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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १०५ यम-नियम निवृत्तिपरक होनेपर ही उपयुक्त त्रिपुरका भस्म कर व्यक्तिके ध्यानसिद्धिका कारण हो सकते है । अत. जैनागममें यम-नियमका अर्थ समताभावको प्राप्ति-द्वारा उक्त त्रिपुरको भस्म करना है, क्योकि इसीसे ध्यानकी सिद्धि होती है । आर्तध्यान और रोद्रध्यानका निवारण धर्म-ध्यान और शुक्लध्यानको सिद्धिमें सहायक होता है।
आसन - समाधिके लिए मनकी तरह शरीरको भी साधना मत्यावश्यक है । आसन वैठनेके ढगको कहते हैं। योगोको आसन लगानेका अभ्यास होना चाहिए। श्रोशुभचन्द्राचार्यने ध्यानके योग्य सिद्धक्षेत्र, नदी. सरोवर समुद्रका निर्जन तट, पर्वतका शिखर, कमलवन, अरण्य, श्मशानभूमि, पर्वतकी गुफा उपवन, निर्जन गृह या चैत्यालय, निर्जन प्रदेशको स्थान माना है । इन स्थानोमें जाकर योगी काष्ठके टुकडेपर या शिलातलपर अथवा भूमि या वालुकापर स्थिर होकर आसन लगावे। पर्यकासन, अर्द्धपयंकासन, वज्रासन, सुखासन, कमलासन और कायोत्सर्ग ये ध्यानके योग्य आसन माने गये है । जिस आसनसे ध्यान करते समय साधकका मन खिन्न न हो, वही उपादेय है। बताया गया है -
कायोत्सर्गश्च पर्यत प्रशस्तं कैश्चिदीरितम् । देहिना वीर्यवैकल्यारकालदोपेण सम्प्रति ॥
-ज्ञानार्णव प्र० २८, श्लो० २२ अर्थात् - इस समय कालदोषसे जीवोके सामर्थ्यको हीनता है, इस कारण पद्मासन और कायोत्सर्ग ये ही आमन ध्यान करनेके लिए उत्तम है । तात्पर्य यह है कि जिस आसनसे बैंठकर साधक अपने मनको निश्चल कर सके, वही आसन उसके लिए प्रशस्त है ।
प्राणायाम - श्वास और उच्छ्वासके साधनेको प्राणायाम कहते है। ध्यानकी सिद्धि और मनको एकाग्र करनेके लिए प्राणायाम किया जाता है। प्राणायाम पवनके साधनकी क्रिया है । शरीरस्थ पवन जब वश हो जाता है