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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
था । देवकी ही उन्हे एक समान रूपाकृति के कारण दो ही भिक्षु समझ रही थी । इसीलिए उसने जिज्ञासावश वह प्रश्न किया था । उन मुनियो ने शान्त भाव से उसे बताया
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" यह सब एक ही नही हे । अलग-अलग है । जो पहले आए, वे हम नही । दूसरे आए, वे पहले नही । हम जो तीसरी बार आए है, सो पहिली ही बार आए है । तुम्हे हम लोगो की समान आकृति के कारण भ्रम हुआ है, देवानुप्रिय । हम छह मुनि है । भगवान नेमिनाथ के हम शिष्य है । हमने जन्म लिया था ।"
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एक ही वय, भद्दिलपुर के
रूप और आकृति के । नाग गाथापति के घर
यह बात सुनते ही देवकी को एक पुरानी बात स्मरण हो आईपोलासपुर नगर मे अतिमुक्त श्रमण ने कहा था - "देवकी, तू नल कुबेर जैसे सुन्दर, दर्शनीय और कान्त आठ पुत्रो को जन्म देगी । भरत क्षेत्र में अन्य कोई माता ऐसे सुन्दर पुत्रो को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त नही कर सकेगी।"
यह बात याद कर वह सोचने लगी- श्रमण की उस वाणी का क्या क्या वह वाणी मिथ्या हुई ? अहा । इन छह सुन्दर पुत्रो को जन्म देने वाली माता ही वस्तुत धन्य हुई है ।
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हुआ
शकाग्रस्त मन लिए वह भगवान के पास पहुँची। केवलज्ञानी भगवान ने उसकी शंका को स्वयं ही दूर करते हुए बताया
" शंकित न हो, देवकी । भद्दिलपुर के नाग गाथापति की पत्नी सुलसा मृत वन्ध्या थी । उसने हरिणंगमेपी देव की भक्ति को थी । देव प्रसन्न हुआ था। तुम और सुलसा एक साथ गर्भ धारण करती थी और एक साथ पुत्रो को जन्म देती थी । देव तुम्हारे पुत्रो को सुलसा के पास ले जाता ओर सुलसा के मृत पुत्त्रो को तुम्हारे पास छोड जाता । तू अव शका ओर दुख को त्याग दे । जिन छह भिक्षुओं को तूने देख है, वे तेरे ही पुत्र है ।"
विस्मित, हर्पित, पुलकित देवकी जब भगवान के पास से उठकर उन छह भिक्षुओ के पास गई तो पुत्र चात्सल्य उसके स्तनां से पवित्र दुग्ध-धारा
वनकर वह चला था ।
- अन्त कृद्दशा
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