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________________ १२ सुबुद्धि की बुद्धि इस संसार मे स्वार्थ का वोल-वाला है । अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मनुष्य करणीय-अकरणीय सभी कुछ करने को तत्पर हो जाता है। किसो की हॉ मे हॉ मिलाने से भला क्या बिगडता है ? मतलव निकलना चाहिए । और फिर सामने कोई व्यक्ति सत्ताधारी हो, राजा हो, तव तो वह दिन को रात कहे तो भी ठीक । किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते है -जो सत्य के उपासक होते है । वे ती होते है. दृढ होते है और तनिक से सासारिक सुख या क्षुद्र लाभ के लोभ से विचलित न होकर अपने मानव-कर्तव्य का पूर्ण पालन करते है । वे अपनी आत्मा को बेचते नही । राजा जितशत्रु का अमात्य सुबुद्धि ऐसी ही मिट्टी का बना था। कर्तव्यपरायण तो था हो. ज्ञानी और विवेकी भी था। राज्य का हित उसकी दृष्टि ने सर्वोपरि था. किन्तु वह त्राटुकार नहीं था। राजा की हाँ मे हाँ मिला र दिन को वह रात नहीं कह सकता था। उसका व्रत थाराज्य का हित गा. किन्तु असत्य भाषण नहीं करूंगा। कर्तव्यपालन करूंगा. किन्तु झूठी चाटुकारी नहीं करूंगा। ऐसे मन्त्री की देखरेख मे राजा जितशत्रु निर्द्वन्द्व होकर चम्पानगरी मे राज्य कर रहे थे। कुशल, कर्तव्यपरायण, नीतिज और तत्वनाता मन्त्री वडी तत्परता से राज्य की देखरेख कर रहा था।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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