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प्रश्न और उत्तर
जब बार-बार उसकी अवहेलना की जाने लगी तब काली आर्या ने सोचा-यह कैसा वन्धन है ? मै इन लोगो के बन्धन मे क्यो पड गई ? जव मै गृहवास मे थो तब स्वाधीन थी। अब प्रवजित होकर पराधीन हो गई हूँ। उस पराधीनता से तो यही अच्छा है कि मैं अलग, एकान्त उपाश्रय मे रहने लगूं और स्वतन्त्र रहूं।
अशुभ कर्मों का उदय होने पर मनुष्य का मन सन्मार्ग से हट जाता है। काली आर्या के साथ भी यही हुआ और अपने निश्चय के अनुसार वह प्रात काल होने पर अलग उपाश्रय मे जाकर रहने लगी। वहाँ वह स्वतन्त्र थी। कोई उसे रोकने वाला नही था। स्वतन्त्रतापूर्वक वह पानी से बार-बार अपने प्रत्येक अंग को धोती, जल छिडक कर स्थान को साफ करती और फिर उस स्थान पर बैठती ।
__ क्रम इसी प्रकार चलता रहा। धीरे-धीरे वह धर्म-कार्य मे शिथिल हो गई। अब वह मनचाहा व्यवहार करने लगी। वह कुशीला, कुशीलविहारिणी और ज्ञानादि की विराधना करने वाली हो गई।
एक छोटी-सी असावधानी के कारण वह पतन के गर्त मे गहरी से गहरी उतरती चली गई। ___इसी तरीके से बहुत समय तक चारित्र की आराधना करके, एक पखवाडे की सलेखना द्वारा शरीर को क्षीण करके, उस पाप कर्म की आलोचना-प्रतिक्रमण करके, काल मास मे काल करके चमरचंचा राजधानी मे, कालावतसक विमान मे वह काली देवी के रूप मे उत्पन्न हुई। हे गौतम | काली देवी के वह दिव्य ऋद्धि प्राप्त करने की यही कथा है ।"
तव गौतम स्वामी ने भगवान से फिर प्रश्न किया"हे भगवन् । काली देवी की कितने काल की स्थिति है ?"
"उसकी स्थिति अढाई पल्योपम की कही गई है।"-भगवान ने वताया।
तव गोतम स्वामी ने अन्तिम प्रश्न पूज
"हे भगवन् । काली देवी उस देवलोक से चल करके कहाँ उत्पन्न होगी?'