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प्रश्न और उत्तर
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“उसी समय उस नगरी मे काल नामक एक गाथापति ( गृहस्थ ) रहता था । वह अत्यन्त धनाड्य था । धन सम्पत्ति के विषय मे उसकी समता करने वाला कोई व्यक्ति उस नगरी मे नही था । उस गृहस्थ की पत्नी का नाम कालश्री था । वह अत्यन्त रूपवती थी ।
काल तथा कालश्री के काली नाम की एक कन्या थी । वह आयु मे बहुत वडी हो गई थी किन्तु अविवाहित ही रह गई थी । वृद्धा के समान वह दीखने लगी थी, अत कोई पुरुष उससे विवाह करने के लिए तैयार नही होता था ।
उस समय अरिहन्त भगवान पार्श्वनाथ सोलह हजार साधुओ तथा अडतीस हजार साध्वियो सहित आम्रशाल वन मे पधारे। उनके आगमन का सुसवाद सुनकर परिषद् निकली ।
काली ने भी यह सुसंवाद सुना । वह बडी प्रसन्न हुई और अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर वह भी भगवान के दर्शन के लिए गई ।
भगवान का धर्मोपदेश भव्य जीवो के लिए अमृत वर्षा के समान था । काली ने वह उपदेश सुना और उसे अपने हृदय में धारण कर लिया । उसका मन वैराग्य के रंग में रंग गया । तीन बार भगवान की वन्दना कर उसने प्रार्थना की
“हे भगवन् | आपके उपदेश को सुनकर मेरी आत्मा पुलकित हो गई है। आत्मकल्याण का मार्ग मेरे सामने खुल गया है । मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ । आपने जैसा कहा है वही सत्य है । अपने मातापिता की आज्ञा लेकर मै आपके समक्ष प्रव्रज्या अगीकार करना चाहती हूँ ।"
"जैसा सुख उपजे, वैसा करो ।” - भगवान ने मधुर वचन कहे । काली आनन्दित हो गई । घर लौट कर उसने अपने माता-पिता से कहा
" हे माता - पिता । मैंने भगवान पार्श्वनाथ का उपदेश सुना है । वह धर्म कैसा श्रेष्ठ है । मुझे वह धर्म रुचा है, और मैं उसे प्राप्त करना चाहती हूँ । मुझे उस धर्म मे ही शरण प्रतीत होती है । यह ससार असार है । बार