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महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएं
"देवानुप्रियो । श्रमण भगवान महावीर इस समय राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में विराजमान है। मै उनको पर्युपासना करने जाना चाहती हूँ।
"देवी का निर्णय शुभ है।" "शीघ्र ही दिव्य विमान तैयार करो । विलम्ब न हो।"
आना का पालन तत्क्षण हुआ । एक हजार योजन के विस्तार वाला दिव्य और श्रेष्ठ विमान प्रस्तुत हुआ। उसमे आसीन होकर देवी भगवान की सेवा में जा पहुँची। भगवान की वन्दना कर, अपनी ऋद्धि से नाटक चार तथा उसे पुन. विलुप्त कर वह अपने स्थान पर लोट गई।
उनके लौट जाने पर गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया"हे भगवन् । काली देवी की वह दिव्य ऋद्धि कहाँ चली गई?" भगवान् ने कूटागार का दृष्टान्त देते हुए बताया
"हे गोतम । एक कूट (शिखर) के आकार की शाला थी । वह बाहर ने दिखाई नहीं देती थी। किन्तु भीतर वह बहुत विस्तृत थी। उसके बाहर हजारो लोग रहते थे। एक बार जब भयानक तूफान आया तो उम जनममूह ने उम शाला मे शरण ली । मब लोग उममे समा गए । जिस प्रकार उन माला में वे सब लोग ममा गए, उसी प्रकार वह देव-ऋद्धि देवशरीर मे समा गई ।"
इन प्रश्न का उत्तर पाकर गौतम स्वामी ने दूसरा प्रश्न किया
"ह भगवान् । काली देवी वडी ऋद्धि वाली है। उन्हें यह ऋद्धि “मि प्रगर प्राप्त हुई ? उसने पूर्वभव मे ऐसा क्या पुण्य कार्य किया था ?" ___ तब भगवान ने काली देवी के पूर्व भव की कथा सुनाई
"हे गौतम । किमी समय इम जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में आम्रकल्पा नाम की नगरी थी। वह नगरी इतनी सुन्दर, इतनी विशाल, टतनी श्री-सम्पद थी कि देवता भी उस नगरी मे आकर रहने की इच्छा करते थे। उन नग के बाहर ईगान कोण मे एक बन और ए चेत्य या। उस वन गनान या आम्रगाल बन । न ममय उन नगरी मे जितगत्र नामक गजा गन्नता था।