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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ 'अरिहन्त भगवान को नमस्कार हो । निर्वाण प्राप्त समस्त मिट्टी को नमस्कार हो । मेरे धर्माचार्य मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार हो । पहिले भी मैने भगवान के समीप स्थूल प्राणातिपात का प्रत्याख्यान किया था, स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किया था। अब भी मैं उन्ही के निकट समस्त प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूँ।'
'मैं जीवन पर्यन्त के लिए सर्व अशम, पान, स्वादिम ओर खादिम चारो प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान करता हूँ।'
'यह जो मेरा गरीर है, जो मुझे बहुत इण्ट रहा है, जिसके विषय मैं मैंने चाहा था कि इसे कोई रोग आदि स्पर्श न करे, इसे भी मैं अन्तिम श्वासोच्छ्वास नक त्यागता हूँ।'
इस प्रकार हे गौतम । यह कथा अब अपने चरम विन्दु तक पहुँच गई। उनके बाद क्या हुआ होगा यह क्या तुम विचार नही कर सकते ?भगवान ने गौतम मे पूछा।
गांतम स्वामी ने उत्तर दिया
"कर सकता है भगवन् । किन्तु आपके श्रीमुख से ही शेप भाग भी मुनना चाहता हूँ ।”
"इनके बाद, गौतम । मृत्यु के समय काल करके वह मढक मौधर्म बच्प में, दर्दगवनमक विमान मे, उपपान सभा मे, दर्दुरदेव के म्प मे उत्पन्न हुआ। तुमने पूछा था न कि किस प्रकार यह दिव्य ऋद्धि उसे प्राप्त हुई ? अब इस क्था को अन्त तक सुनकर तुम्हारी जिजामा शाल हो गई न?"
"हाँ भगवन् ! मैं जान गया कि किस प्रकार दर्दुरदेव को यह दिव्य देवधि प्रान हुई । मेरी जिज्ञासा शाल हुई 'भगवन् । देवता की एक ही छोटी-सी बात आर जानना चाहता हूँ प्रभो । दर्दरदेव की उस देवलोक मे विननी स्थिति कही गई है ?”- गौतम स्वामी ने अन्तिम प्रश्न किया ।
भगवान ने बताया