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तुम चोर नहीं हो
रोहिणेय को जागा हुआ देखकर देत्रिया - ::- करने लगी। कोई चरण दबाने लगी. को: पंजा नानी -- मुनाने लगी. कोई नृत्य दिखाने लगी और बोई जाने -- --::---. शरो से वीधने लगी ।
___ उस समय एक देव प्रतिहार स्वर्ण-वाड व मेनिन और पर्यक पर आराम ने लेटे हुए रोहिणेय ने बोला
“हे देव ! इस देवलोक मे आपका स्वागत है। आप देवता बने है। इस देवलोक की पपिाठी के अनुसार दिन पाप-पुण्य का वर्णन एक-वार करने ती कृपा कीजिए और किना --- इस देवलोक मे इन देवियों के साथ यथेच्छ विहार कीजिए । महाग गीघ्र ही आपले भेट करेगे ।
विलक्षण बुद्धि वाले मन्त्री अभयकुमार की यह बाल नापन होने की वाली थी और रोहिणेय अपने विगत जन्म का लेखा-जोखा ने ही बान कि उसे महावीर का वचन याद आया-देवताओ के गले नाना जी मुरझाती नहीं, उनके पलक कभी झपकते नहीं · · ।
और रोहिणेय सावधान हो गया। उसने देखा कि इन देवियो। पलक तो झपक रहे है ।
वह नव कुछ समझ गया। जान गया कि यह माग इन्द्रजात उन अद्भुत बुद्धि वाले मन्त्री का ही रचा हुआ है। मैं पकड मे आ ही गया था, किन्तु नगवान के वे थोड़े से वचन जोकि मेरे कानो मे अकस्मात् पड़ गए थे. आज मेरे ग्क्षक सिद्ध हुए।
मुस्कराते हुए रोहिणेय ने मन्त्रीश्वर को अपना प्रणाम कहलवाया और प्रार्थना की कि गरीव दुर्गचन्ड को शालिग्राम जाने की आजा मिले ।
__ भगवान की कृपा के सामने चतुर मन्त्रीश्वर हार गए। वे चाहते थे. उनकी योजना थी कि भुलावे मे पड़कर रोहिणेय अपने ही मुख मे अपना अपराध स्वीकार करले ताकि उसे समुचित दण्ड दिया जा सके। किन्तु वैमा नहीं हुआ।