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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं
चोरों के गिरोह में मिल जाने पर अपनी कुशलता से उसने शीघ्र ही उस दल का नेतृत्व अपने हाथ मे ले लिया । दिन के समय वह चोरी किये जाने लायक स्थान की खोज-वीन करता और रात्रि को अपने गिरोह के साथ उस स्थान पर धावा बोल देता । मजबूत मजबूत और सुरक्षित से सुरक्षित स्थान मे भी पलक झपकते झपकते संध लगा देना उसके बाएँ हाथ
का खेल था ।
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एक बार वह अपने साथियो सहित चोरी करने के लिए एक ऐसे मकान में पहुंचा जिसकी दीवारे चूने ओर पत्थर की न होकर काठ की थी । यह कथा पुराने जमाने की है, उस समय लकडी के मकान बहुतायत मे पाये जाते थे । अव ज्यो ही वह उस काष्ठ की दीवार मे मेध लगाने लगा कि उसका कलाकार-मानस जाग उठा । अनजाने ही, सहज भाव से वह वहाँ सेध लगाने मे भी कला का उत्कृष्ट नमूना तैयार करने लगा । काष्ठ को वह इस ढंग से काटने लगा कि एक सुन्दर कंगूरे का रूप वन जाय । उसके साथी उसकी इस प्रकार की तन्मयता देखकर वौखलाए -
“भाई ! यहाँ चोरी करने आए हो या अपनी कारीगरी दिखाने ? इस प्रकार तो विलम्व हो जायगा और हम सब पकडे जाकर मारे जायँगे । जल्दी से सेध लगाकर अपना काम खत्म करो ।”
चोर वन जाने पर भी जिसके हृदय से कला का प्रेम विनष्ट नही हुआ था ऐसा वह कलाकार उत्तर मे वोला
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“अरे भाई । चोरी तो करनी ही है, किन्तु ऐसा स्थान और ऐसी वस्तु हर समय उपलब्ध नही होती । अतः तनिक अपनी कला का जादू भी दिखा दूं, ताकि प्रात काल जब लोग उसे देखें तो उन्हे यह पता चले कि चोरी करने के लिए केवल चोर ही नही कोई असाधारण कलाकार भी
आया था ।"
उसकी इस सरल मूर्खता पर साथियो को हँसी आ गई ।
नीद
तीक्ष्ण धार वाली आरी चलती रही । उसकी आवाज से गृहपति की 'खुल गई । सावधान होकर वह एक ओर छिप गया। सेव लग जाने पर ज्यही क्लाकार ने तीखे कंगूरो वाली सध से घर मे घुसने के लिए पैर भीतर डाला कि गृह स्वामी ने झपट कर उसके पॉव मजबूती से दबोच लिए