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________________ १२० महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं इसकी यह दशा कैसे हो गई ? अवश्य ही यह मेरे वियोग में ही दुख के कारण पगली हो गई है। अरे, यह मै क्या देख रहा हूँ ? मैंने यह क्या कर डाला? यह तो मैंने बडी भयानक भूल की ।” ___ इस प्रकार आन्तरिक हृदय से पश्चात्ताप करते हुए अरणक तुरन्त घर से बाहर निकला ओर दोडकर अपनी माता के चरणो में जा गिरा--"मां । मेरी माता । मुझे क्षमा कर । बस, एक वार क्षमा कर । मुझसे भयानक भूल हुई । भविष्य मे कभी न होगी।" भूला राही ठीक मार्ग पर आ गया। आचार्य के पास जाकर उसने आलोचना की, शुद्धि की तथा आज्ञा लेकर जलते हुए शिलाखण्ड पर पादोपगमन सथारा लेकर अचल होकर स्थित हो गया। उसके हृदय से अब सारी शिथिलता और भय दूर हो चुका था। जितना वह कोमल था, उतना ही दृढ अब बन चुका था। वज्र से भो अधिक कठोर। -~-उ० अ० नि० गा० ६२
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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