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________________ देवताओ ने क्या देखा? “महाराज । वह वात नहीं रही अव । इसमे सहजता नहीं रही। आडम्बर आ गया है । आपका वह सोदर्य सहज, निराडम्बर था। काया नीरोग थी। अब वह वात नही रही।" "क्यो, विप्रवर । अव उस काया को क्या हो गया ?" "रोगो ने घर वना लिया है। महाराज । आपकी देह मे अब अनेक व्याधियाँ प्रविष्ट हो चुकी है।" "प्रमाण ?" "ब्राह्मण झूठ नहीं बोलते। हाथ कंगन को आरसी क्या ? अपने थूक की परीक्षा तो कर देखिए जरा।" सचमुच चक्रवर्ती के थूक मे दुर्गन्धि थी। रोग के कीटाणु थे। चक्रवर्ती सनत्कुमार के जीवन मे एक मोड आ गया। उस मोड पर खडे होकर उन्होंने पीछे देखा-नश्वरता । निस्सारता। अनित्यता । रोग, शोक और दुख । उस मोड पर खडे होकर उन्होने आगे देखा-वैराग्य । साधना । आत्मा का अमरलोक । देवता अपने वास्तविक रूप मे प्रकट होकर अपने द्वारा ली गई परीक्षा की बात बताकर अन्तर्ध्यान हो गए। और सनत्कुमार भी फिर पीछे नही लौटे। उस मोड से वे आगे बढ गए । आगे वढते ही चले गए। अपना चक्रवर्तित्व क्षण भर मे ठुकराकर वे मुनि बन गए। उनके शरीर पर भयानक कुप्ठ रोग ने आक्रमण कर दिया। किन्तु सामान्य जन के लिए असह्य पीड़ा को भी शान्ति और सद्भाव से सहन करते हुए वे अपनी तपस्या और आत्म साधना मे रत रहे । अनेको प्रकार की लब्धियाँ और मिद्धियाँ उन्हे प्राप्त हुई। किन्तु वे सभी से तटस्थ थे। न रोग से चिन्ता, न सिद्धि का अहंकार । उनका धैर्य हिमालय की भॉति अचल और अडिग था। देवो के राजा इन्द्र यह वात नी जानते थे। आर जव किसी प्रसग मे उन्होंने मुनि सनत्कुमार के जडिग धैर्य की प्रशसा की तव वे ही दोनो देव फिर से उनको परीक्षा लेने को उद्यत हुए ।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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