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महावीर युग को प्रतिनिधि कयाएं उसने अपने मन मे गाँठ बाँध ली कि किसी दिन अवसर आने पर म्कन्दक से बदला अवश्य लूंगा । एक दुष्ट व्यक्ति का विचार इसके अतिरिक्त ओर हो भी क्या सकता था?
समय का पक्षी उडता गया। एक बार स्कन्दक ने बीसवे तीर्थकर भगवान मुनि सुवतस्वामी का उपदेश मुनकर, वैराग्य से प्रेरित होकर अपने पाँच मो साथी कुमारो के माथ दीक्षा ग्रहण करली ओर मुनि बनकर विचरण करने लगा।
विचरते-विचरते एक बार मुनि स्कन्दक ने कुम्भकारकटक की ओर विहार कर अपने ससार-जीवन के बहिन-बहिनोई को उपदेश देने का विचार किया । भगवान से अनुमति चाही। भगवान केवलज्ञानी थे । उन्होने कहा
"म्कन्दक । कर्मों की गति को कोई नहीं रोक सकता। वहाँ तुम्हे भयकर उपमर्ग होगा । इतना भयकर कि तुम साधुओ के प्राण ही रो लेगा।
मुनि स्कन्दक की नमो मे वीर क्षत्रिय रक्त प्रवाहित था। मरने से वे क्या उरते? फिर मुनि बन जाने के बाद तो उनके लिए जीवन आर मरण में कोई भेद ही नहीं था। मयम की आराधना ही एक मात उनका इाट था। वे बोले
___ "भगवन् । मृत्यु का तो कोई भय नही। किन्तु हम मयम के । आगधक तो होगे न ?" ___ "हाँ, तुम्हारे अतिरिक्त शेष मभी होगे।"
म्फन्दक मुनि भगवान की आना लेकर चल पड़े। कुम्भकारकटक पहुँच कर नगर मे बाहर एक उद्यान में ठहर गए ।
___पातक को सूचना मिली। उसने मोचा-शिकार म्वय ही बता आया है। अब अपने अपमान का बदला लंगा। अपने वैर को शात करगा।
उपाय सोचा जाने लगा। उसकी दुष्ट बुद्धि मे एक उपाय न्श नी गना । चुपचाप उस उद्यान में उसने कुछ भयकर शस्त्र भूमि मे गटवा दिशा भार राजा के पास जाकर टोग करता हुआ बोला--
• राजन चेति । शीत्रता कीजिा । कन्दक आपका राय बचाने ने पिसने पात्र नौ चुने हा योद्वानो के माय नगर की मीमा पर आ पर्दचा है।"