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संयम-असंयम
कोई व्यक्ति वडे परिश्रम से जीवन भर मे कुछ पूँजी इकट्ठी करे और फिर उसे एक ही दिन मे उडा दे, अथवा वर्षों की मेहनत के बाद कोई सुन्दर भवन बनाया जाय और जब वह बनकर तैयार हो जाय तब उसमे आग लगा दी जाय, तो ऐसे व्यक्ति को और इस प्रकार का कार्य करने वालो को क्या कहा जाय ?
राजा पद्मनाभ ने बहुत वर्षों तक राज्य-सुख भोगा और फिर अन्त मे दीक्षा ग्रहण कर, वडे पुत्र पुण्डरीक को राज्य सौपकर विचरण करने लगा। छोटा राजकुमार कण्डरीक जीवन से विरक्त था। उसने भी कुछ समय पश्चात् दीक्षा ग्रहण कर ली।
कण्डरीक अनगार ने तप किया, साधना की और सयम की बहुमूल्य पूंजी एकत्र की । सयोगवश एक वार उन्हे दाह ज्वर ने पकड लिया। किसी भी प्रकार इस ज्वर ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सारे शरीर मे आग-सी लगी रहती । मुनि इस रोग से व्याकुल हो गए।
रोग ग्रसित, व्याकुल मुनि विचरते-विचरते पुण्डरीक की राजधानी मे आ पहुँचे । उनके आगमन की सूचना पाकर और उन्हे रोग से पीडित देखकर बडे भाई ने उनका समुचित उपचार कराया। धीरे-धीरे रोग शान्त हो गया।
_गेग तो शान्त हो गया किन्तु मुनि का मन विचलित हो गया । यह व्याधि, मन की यह फिसतन, उस शरीर की व्याधि से भी अधिक भयकर सिद्ध हुई। चिकित्सालय की सुख-सुविधाओ के कारण मुनि कण्डरीक का मन विषय-भोगो मे आसक्त हो गया। भीतर ही भीतर तृप्णा की आग से