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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं बेचारे असत. अजानो लकडहारे आपस मे एक-दूसरे को बुरा-भला हने लगे । किन्तु उनमें से एक समझदार और जानी था । उसने अरणि को लकड़ी के दो टुकडे उठाए ओर उन्हे घिसा । उस घर्पण से अग्नि प्रकट हो गई। तब उसने कहा-“भाइयो । अरणि की लकडी को काटने से अग्नि नही होती । उसके दो टुकडो के संघर्पण से प्रकट होती है। किसी भी बान को भली प्रकार समझकर और अपनी बुद्धि का उपयोग कर कार्य करने होमलता गाज होती है ।"
कनारे नहा के संघर्षण से जो चिनगारियाँ फूट निकली थी, जनीशम के सम्पर्क में लाया गया और देखते-देखते ही चूल्हा जल उठा।
हार लोगो को भोजन की आशा बँधी।
गिर जग मे अग्नि है, उसी प्रकार शरीर में आत्मा स्थित - -: निपट करने के लिए उसके टुकडे नही, घर्पण करना
. . . T T निकानन्द निन्मय आत्मा के दर्शन के लिए भी . . .:-:: लिन की आवश्यकता होती है।
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-~~-राजप्रश्नीय सूत्र