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________________ २७४ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ पुरोहित के यहाँ पुत्रो के रूप मे जन्म ग्रहण किया। वे बहुत ही सुन्दर थे । यगा उन्हे देखकर आनन्द-विभोर थी, किन्तु मन मे यह भय समाया हुआ था कि मुनियो की भविष्यवाणी के अनुसार ये कही दीक्षा न ग्रहण कर ले अत उन्होने नगर को छोडकर व्रज मे निवाम किया जहाँ पर कोई मुनि न आ मके । यशा अपने पुत्रो के मन में समय-समय पर माधुओ के प्रति भय की भावना पैदा करती रहती थी। वह उनसे कहती-साधुओ के पास मत जाना । वे छोटे-छोटे बच्चो को उठाकर ले जाते है। उन्हे मार कर उनका मॉस खा जाते है । और तो क्या उनसे बात भी मत करना। मॉ की शिक्षा के फलस्वरूप दोनो बालक सावुओ के नाम से ही काँपते थे। एक बार दोनो वालक ग्वेलते-खेलते गाँव से बहुत दूर निकल गये। उन्होने दूर से देखा कई साधु उस मार्ग से आ रहे है । उन्हे देखकर वे घवरा गये। अब क्या करे ? बचने का कोई उपाय नही था, अत वे शीघ्र ही पास के एक सघन वट-वृक्ष चढ गये । सयोगवश सावु भी उस वृक्ष की गीतल छाया मे आकर बैठे। वालको का भय बढा। माता-पिता की शिक्षा स्मृतिपटल पर नाचने लगी । छुपे हुए चुपचाप देखने लगे कि साधु क्या करते है ? साधुओ ने पेड के नीचे आकर इधर-उधर देखा-भाला कि कहीं पर जीव-जन्तु तो नहीं है। धीरे से चीटो को एक ओर सुरक्षित किया, और बडी यतना के साथ बैठकर भोजन जो पात्र में माथ ताये थे वह करने लगे। दोनो बाराको ने उनके दयाशील व्यवहार को देखा, उनका करुणापूर्ण वार्तालाप सुना । उनके अन्तर्मानम का भय दूर हो गया। इससे पूर्व भी हमने कभी इनको देखा है ? ये वित्कुत ही अपरिचित तो नहीं लगते है ? धीरे-धीरे धुंधली-सी स्मृति अवचेतन मन पर रूपाकार होने लगी। वह कुछ गहरी होकर स्पष्ट होने लगी। कुछ ही क्षणो मे उन्हे अपने पूर्व भव का स्मरण हो आया। उनका सम्पूर्ण भय दूर हो गया। अन्तर्मन प्रसन्नता से झूम उठा । वे वृक्ष से नीचे उतरे ओर मुनियो को बन्दन किया। मुनियो ने उनको प्रतिबोध दिया। वे घर आये और माता-पिता मे निवेदन किया "हमने देखा है-मानव-जीवन अनित्य है, उसमे भी विघ्न बहुत है, आयु अल्प है इसलिए घर मे हमे कोई आनन्द नही ह। हम मुनि-चर्या को म्वीकार करने के लिए आपकी अनुमति चाहते है।" .
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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