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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
धैर्य के अभाव मे और असयम के कारण उसे अपने प्राणो से हाथ धोना पड़ा।
दूसरा कछुआ विवेकवान व सयमी था। उसे अपनी इन्द्रियो पर पूर्ण अधिकार था । वह शान्त-भाव से बैठा रहा। उन शृगालो ने अनेक प्रयास किये किन्तु उन्हे सफलता नहीं मिली। अन्त मे निराश होकर वे उलटे पैरो लौट गये । जब कछुए को यह पूर्ण विश्वास हो गया कि शृगाल चले गये है तब उसने अत्यन्त सावधानी से अपने अगोपागो को बाहर निकाला और इधर-उधर देखकर वह शीघ्र ही दौडकर मगेवर मे पहुच गया और अपने स्नेही साथियो से जा मिला।
श्रमण भगवान महावीर ने कथा का सार प्रस्तुत करते हुए कहा"जो प्रथम कछुए के समान साधक है, वह विनष्ट होता हे और द्वितीय कछुए के समान जो साधक है वह इन्द्रियो पर सयम रखकर अपने जीवन को चमकाता है।"
मयम जीवन है । उसके सामने पाप की गक्ति पराजित हो जाती है। अत· मयम मे जीवन को चमकाओ।
-~-ज्ञाता धर्म कथा