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प्राग्रह छोड़ो
एक बार एक नगर मे कुछ व्यापारियो को अपने व्यापार मे भारी हानि उठानी पडी । यहाँ तक कि पास की मूल पूँजी भी प्राय समाप्त हो चली । “आगे और भी परिस्थिति खराब होगी, " ऐसा विचार कर सभी व्यापारियो ने आपस मे विचार-विमर्श कर, सहमत होकर अन्यत्र किसी दूरवर्ती स्थान पर जाकर व्यापार करके धन कमाने की योजना बनाई ।
निर्णय के अनुसार व्यापारियो का वह काफिला कुछ अन्य दरिद्र साथियो को साथ लेकर यात्रा पर निकल पड़ा । काफी मार्ग पार कर लेने के पश्चात् उन्हे पहाडियो से घिरा एक निर्जन स्थान दिखाई पडा । वहाँ पहुँचने पर व्यापारियो ने देखा कि उस स्थान पर इधर-उधर काफी मात्रा मे लोहा बिखरा पड़ा है और जब उन्हे यह ज्ञात हुआ कि यहाँ पर लोहे की खान है तो सभी बहुत प्रसन्न हुए। "यह तो व्यापार का अच्छा साधन बन जायेगा," ऐसा विचार कर सबने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार लोहे के गट्ठर वॉध लिए। “नगर मे जाकर बेच देगे तो कुछ पैसे उपलब्ध हो जायेगे ।" ऐसा विचार करके जव वे कुछ आगे बढे तो उन्हे ' त्रपु ' ( शीशारागा ) की खान मिली। उन्होने सोचा 'लोहे' से इसकी कीमत ज्यादा होती है, अत क्यों न लोहे को यही छोडकर इसे बाँध ले ।"
यह विचार कर वे सभी रागा के गट्ठर बाँधने की तैयारी करने लगे । तभी उनमे से एक व्यापारी बोला - "वास्तव मे तुम लोग अस्थिर विचार के व्यक्ति हो । जब एक वस्तु ले रखी है तो उसे छोड़कर दूसरी पर
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