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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं
अस्तु, एक दिन उसने अपने सभी सगे-सम्बन्धियों को तथा नगर के अन्य प्रतिष्ठित, प्रमुख पुरुषो को अपने घर आमन्त्रित किया । उनका उचित स्वागत-सत्कार किया और फिर सबसे पहले अपनी सबसे बडी पुत्रवधू को वुलाकर उसे शालि (चावल) के पाँच दाने देकर कहा
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" बहू ! ये शालि ले जाओ । इन्हें सुरक्षित रखो ओर इनकी वृद्धि करो । जब भी मैं वापस मागूं तब लौटा देना ।”
वडी बहू उज्झिआ वे शालि ले तो गई किन्तु सोचने लगी कि भला इन दानो को मैं कहाँ तक सम्हाल कर रखूं ? जब भी श्वसुर जी दाने मांगेगे, मै भडार मे से निकालकर दे दूंगी। यह सोचकर उसने उन्हें फेक दिया |
अब दूसरी बहू भोगवती को भी उसी प्रकार दाने दिए गए। उसने भी लिए और सोचा - ससुर जी ने दाने दिए है तो फेंकना तो नही चाहिए, चलो उन्हें खा ही डालती हूँ। यह सोचकर वह उन्हें खा गई ओर उनके विषय मे भूलभाल कर अपने काम मे लगी ।
तीसरी पुत्रवधू को जब दाने दिए गए तो उसने सोचा कि श्वसुर जी ने दाने दिए है तो अवश्य कुछ न कुछ महत्त्व होना चाहिए । अत इतना विचार कर उसने उन्हें एक मूल्यवान रत्न- मजूपा में सुरक्षित रख दिया। उन्हें वह प्रतिदिन सम्हाल भी लिया करती थी ।
अब बारी आई चोथी ओर सबसे छोटी पुत्रवधू रोहिणी की । उमने शालि लेकर सोचा- श्वसुर जी ने शालि दिए हे ओर कहा है कि में इनकी रक्षा ओर वृद्धि कम् । अत उसने वे दाने अपने पिता के पास भेजकर कहलाया- 'पिताजी, आप ऋतु आने पर इन्हें खेत में वो दे और सावधानी से इनकी रक्षा करें ।'
रोहिणी के कथनानुसार उसके पिता ने वर्षा ऋतु आने पर उन्हें एक छोटी-मी क्यारी मे वो दिया । उपयुक्त समय पर फसल काट ली ओर ख लिया ।
इस प्रकार पाच वर्ष व्यतीत हो गए। प्रतिवर्ष जितने भी शांति ब उन्हें बोला जाता और फसल काट ली जाती ।