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बदला
किसी नगर मे कुछ क्षत्रिय परिवार थे। शस्त्रों के संचालन में क्षत्रिय स्वभावत निष्णात हुआ करते है । यद्यपि उनकी शस्त्र विद्या का उपयोग शत्रुओ से अपने देश की रक्षा के लिए ही होना चाहिए, किन्तु कभी - कभी मामूली सी ही बात पर भी वे अपने शस्त्रो का प्रयोग आपस मे भी कर बैठते थे ।
एक बार किसी क्षत्रिय परिवार के एक सदस्य को कोई निर्मम हत्यारा मार गया । मृत व्यक्ति का भाई वडा दुखी हुआ और शोक में इव गया । इसकी माता भी अपने बेटे की हत्या से अत्यन्त दुखी थी ।
किन्तु केवल दु ख करते रहने से तो कुछ आना-जाना नही था | बुढी माँ की नसो मे भी क्षत्रिय रक्त था । वह वीर पत्नी ओर वीर माता थी । उसके परिवार मे तो पीढियों से प्राण लेने-देने का खेल ही मानो चला
करता था ।
कुछ समय शोक में डूबे रहने के बाद उसे अपने क्षत्रिय-रक्त का और क्षत्रिय कुल की आन का भान आया । आहत सर्पिणी की भांति वह फुफकार उठी
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" बेटा । अव शोक का त्याग कर उठ खडा हो । तलवार उठा । त् मेरा पुत्र है | एक वीर क्षत्रियाणी का पुत्र हे । तेरी नसो मे वीर क्षत्रियो का रक्त है | अपने शत्रु से बदला न लेकर इस प्रकार रोते-धोते बैठे रहना तो कायरो का काम है | तुकायर नही, वोर क्षत्रिय है । उठ जाकर अपने शत्रु
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