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महावीर वर्षमान
के अनुयायियों ने ब्राह्मणों का विरोध करना छोड़ दिया और उन की बातों को अपनाते चले गये। फल यह हुआ कि जैनों ने अपने पड़ोसियों की देखादेखी अग्निपूजा स्वीकार की, सूर्य में जिनप्रतिमा मानकर सूर्य की पूजा करने लगे, गगा के प्रपात-स्थल पर शिवप्रतिमा के स्थान पर जिनप्रतिमा मानकर गगा के महत्त्व को स्वीकार किया, यज्ञोपवीत आदि सस्कारों को अपनाया, यहाँ तक कि आगे चलकर वे जाति से वर्णव्यवस्था भी मानने लगे। फल यह हुआ कि जैनधर्म अपनी विशेषताओं को खो बैठा और अन्य धर्मों की तरह वह भी एक रूढ़िगत धर्म हो गया ।
१४ महावीर और बुद्ध की तुलना बौद्ध ग्रथों में पूरण कस्सप, मक्खलि गोसाल, अजित केसकबल, पकुध कच्चायन, निगठ नाटपुत्त और सजय वेलट्ठिपुत्त इन छ: गणाचार्य, यशस्वी और बहुजन-सम्मत तीर्थकरों का उल्लेख आता है । १०२ निगठ नाटपुत्त (निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र) महावीर बुद्ध के समकालीन थे और सभवतः बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् महावीर का निर्वाण हुआ था। जैसा ऊपर कहा जा चुका है महावीर का असली नाम वर्धमान था और वे ज्ञातृवश में पैदा होने के कारण ज्ञातृपुत्र कहे जाते थे। महावीर महा तपस्वी थे
और तीर्थप्रवर्तन के कारण वे तीर्थकर कहलाते थे। बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था और शाक्यकुल मे पैदा होने के कारण वे शाक्य
१०१ जिनसेन, आदिपुराण पर्व ४० १०२ देखो संयुत्तनिकाय, कोसलसंयुत्त, १,१
''प्रोफ़ेसर जैकोबी का यही मत है। मुनि कल्याणविजय जी का मानना है कि बुद्धनिर्वाण के लगभग चौदह वर्ष पीछे महावीर का निर्वाण हुमा (वीरनिर्वाण-संवत् और जैन कालगणना)