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महावीर वर्धमान
एक दिन अपनी आँख फोड डाली । ब्राह्मण प्राया और यथावत् पूजा, सत्कार करके चला गया। थोडी देर बाद भील आया । उस ने शिव जी की एक आँख गायब देखकर भट अपनी प्रॉख निकालकर उन के लगा दी । जब ब्राह्मण को पता लगा तो उस की समझ में आया कि क्यों शिव जी भील को चाहते है । ५२ यह लौकिक उदाहरण यद्यपि भक्ति और मान की उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के लिये दिया गया है लेकिन इस से पता लगता है कि जैनधर्म में ऊँच-नीच तथा निरर्थक बाह्याडंबर के लिये कोई स्थान नही था। मनुष्य अपने कर्म से अपने गुण से और अपनी मेहनत से ही उच्च पद प्राप्त कर सकता है, न कोई ऊँचा है न कोई नीचा, यह महावीर का अलौकिक संदेश था ।
७ स्त्रियों का उच्च स्थान
के विषय में महावीर बहुत उदार थे। उस युग मे स्त्रियों की बडी दुर्दशा थी। कोई उन्हें मायावी कहता था, कोई कृतघ्न कहता था, कोई चचल कहता था, कोई कामाग्नि से धधकती हुई अग्नि कहता था, और कोई नरक की खान बताता था । स्मृतिकारो ने कहा है कि स्त्री को किसी भी अवस्था 'स्वतंत्र न रहने देना चाहिये । बुद्धदेव जैसे जीवन के कलाकार उपदेशक के सामने जब स्त्री -दीक्षा का प्रश्न श्राया तो उन्हें इस विषय पर काफ़ी विचार करना पड़ा। पहले तो उन्होंने भिक्षुणी को अपने सघ मे स्थान देने से इन्कार कर दिया, परन्तु अपनी मौसी महाप्रजापति गौतमी के बहुत आग्रह करने पर उन्हों ने उसे सघ मे दाखिल किया, यद्यपि आगे चलकर
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'बृहत्कल्प भाष्य पीठिका पृ० २५३
चुलवग्ग १०.१