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महावीर वर्धमान प्रतिष्ठा के लिये अधिकाधिक समता की आवश्यकता है। जब तक हम ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का, धनवान-निर्धन का भाव पोषण करते हैं, तब तक हम अहिंसक नही कहे जा सकते । महावीर के उपदेशानुसार समस्त जीव एक समान है, उन में ऊँच-नीच की बुद्धि रखकर मनुष्य हिंसक वृत्ति का पोषण करता है। उत्तराध्ययन सत्र में जयघोष मनि और विजयघोष ब्राह्मण का सुंदर संवाद आता है । जयघोष जब विजयघोष की यज्ञशाला में भिक्षा माँगने गये तो विजयघोष ने यह कहकर मुनि को भगा दिया कि उस के घर वेदपाठी, यज्ञार्थी और ज्योतिषांग जाननेवाले ब्राह्मणों को ही भिक्षा मिलती है। उस समय जयघोष मुनि ने बताया कि चाहे कोई भी हो, जो अपना और दूसरों का कल्याण कर सके वही ब्राह्मण कहा जा सकता है; सच्चा ब्राह्मण वह है जिस ने राग, द्वेष, और भय पर विजय प्राप्त की है, जो अपनी इन्द्रियों पर निग्रह रखता है, कभी मिथ्या-भाषण नहीं करता, तथा जो सर्व प्राणियों के हित में रत रहता है। केवल सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं कहा जाता, ॐकार का जाप करने से ब्राह्मण नही हो जाता, जंगल में वास करने से कोई मुनि नहीं हो जाता, तथा कुश-वस्त्र धारण करने से कोई तपस्वी नहीं हो जाता। वास्तव मे समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तपस्वी होता है। सच पूछा जाय तो मनुष्य अपने अपने कर्मो से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कहा जाता है, किसी जाति-विशेष में उत्पन्न होने से नहीं।" जैन ग्रंथों में ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर इस
" वही, २५.२३, २६-३१ तुलना करो-मा ब्राह्मण दारु समावहानो,
सुद्धि अमचि बहिद्धा हि एतम् । न हि ते न सुद्धि कुसला वदन्ति, यो बाहिरेन परिसुद्धि इच्छे ।