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तत्कालीन परिस्थिति और महावीर की दीक्षा १५ पले थे; उन्हे सोना-चाँदी, धन-धान्य, दासी-दास प्रादि भोगोपभोग-सम्पदा की कोई कमी न थी।
२ तत्कालीन परिस्थिति और महावीर की दीक्षा ___ भारतीय इतिहास मे ब्राह्मण और श्रमण सस्कृति नाम की दो अत्यन्त प्राचीन परपराये दष्टिगोचर होती है। ब्राह्मण लोग वेदों को ईश्वरीय वाक्य मानते थे, इन्द्र, वरुण आदि वैदिक देवों की पूजा करते थे, यज्ञ में पशुबलि देकर उस से सिद्धि मानते थे, चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था स्वीकारकर अपनी जाति को सर्वोत्कृष्ट समझते थे, तथा ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और मंन्यासी इन चार आश्रमों को स्वीकार करते थे। श्रमण लोग इन बातों का विरोध करते थे; वे संन्यास, आत्मचिन्तन, संयम, समभाव, तप, दान, आर्जव, अहिसा, सत्यवचन आदि के ऊपर भार देते थे, और आत्मशुद्धि को प्रधान मानते थे। श्रमण-परपरा मे यज्ञ-याग आदि कर्मकाण्ड का स्थान आत्मविद्या को मिला था, और वह क्षत्रियों की विद्या मानी जाती थी। उपनिषदों में कहा है कि ब्राह्मण लोग ब्रह्म को जानकर पुत्र की इच्छा, धन की इच्छा, और लौकिक इच्छात्रों से निवृत्त होकर भिक्षा-वृत्ति का आचरण करते है। महाभारत मे, जो श्रमण-परपरा के प्रभाव से काफी प्रभावित है,
* कल्पसूत्र ३२-१०८ ‘प्रापस्तंब २.६.२१.११-१४ 'गौतमधर्म ३.१२-१४ "छान्दोग्य उपनिषद् ३.१७.४
१२ बृहदारण्यक ४.२-३; छान्दोग्य ५.११, ५.३.७ "बृहदारण्यक ३.५