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करून्ड
म. वी. रूपी समुद्रके पारको प्राप्त सरस्वती देवीके समान मालूम पड़तीथीं । वे त्रिसला रानी ? पु. भा.
इंद्रको इंद्राणीकी तरह स्वामीको प्राणोंसे भी अधिक प्यारी अत्यंत स्नेहका स्थान होती? nam हुई । वे दोनों महाराज महाराणी महापुण्यके उदयसे महान् भोगोंको भोगते हुए।
सुखसे रहते थे।
अथानंतर सौधर्मस्वर्गका इंद्र अच्युतस्वर्गके इन्द्रकी छह महीनेकी आयु शेष जान। कर कुवेरको बोला । हे धनद इस जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें सिद्धार्थ महाराजके महलमें अंतिम
तीर्थंकर श्री वर्धमान स्वामी जन्म लेंगे, इसलिये तुम यहांसे जाकर उनके महलमें। हा रत्नोंकी वर्षा करो और शेष आश्चर्य भी स्वपरके हितकरनेवाले करो। ऐसी इंद्रकी आज्ञाको
शिरपर रख वह यक्षाधिपति मध्यलोकमें आया। फिर प्रतिदिन वह कुवेरदेव खुशीके, है साथ महाराज सिद्धार्थके मंदिरमें प्रतिदिन सोनेकी वर्षासहित रत्नोंकी वर्षा करता हुआ ! ऐरावत हाथीकी मुंडके समान मोटी अनेक रत्नोंकी धारा पुण्यकल्पक्षके प्रभावसे पड़ने ?
लगीं। दैदीप्यमान रत्नसुवर्णमयी वर्षा आकाशसे पड़ती हुई ऐसी मालूम पड़ने लगी मानौं । | प्रकाशमान माला मातापिताकी सेवा करनेको ही आई है।
गर्भाधान से पहले छह महीनेतक महाराज सिद्धार्थके मंदिरपर वह कुवेरदेव श्रीजि- ॥४४॥ 1) नेश्वरकी सेवा करनेके लिये प्रतिदिन कल्पक्षोंके फूल तथा सुगंधित जलकी वर्षाके ।