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लम्कल
अपने ज्ञान के समान ही क्षेत्रमें गमन आगमन करनेमें समर्थ वह इंद्र भूपोंसे शोभायमान । वावीस सागरकी आयु पाता हुआ।
वाईस हजार वर्ष बीत जानेपर सव अंगोंको तृप्ति देनेवाला मानसीक दिव्य अमृतका आहार करता हुआ । ग्यारह महीने बीत जानेपर दिशाओंको सुगंधित करनेवाली ऐसी सुगंधित श्वास लेता था। भक्तिसे पूर्ण वह सुरेश तीर्थंकरोंके पांचों कल्याणकोंको तथा सामान्य केवलियोंके दो कल्याणक करनेको जाता था। देवोंकर जिसके चरणकमल पूजे गये और धर्मकार्यमें मुखिया ऐसा वह इंद्र गहान पूजा आदि महोत्सवोंसे अपने धर्मको बढ़ाता हुआ। वह सुरेश महादेवियोंके साथ अनेक तरहकी क्रीडाएँ करता हुआ मनसे विषयजन्य सुखको भोगता हुआ।
इस प्रकार परम आनंदयुक्त वह अच्युतेन्द्र सब देवोंसे नमस्कार किया गया सुखसागरमें मग्न होता हुआ। इसतरह धर्मके फलसे प्राप्त सकलसंपदाओंसे पूर्ण श्रेष्ठ स्वर्गका राज्य पाकर वह देवोंका स्वामी दिव्य भोगोंका भोगता हुआ। ऐसा जानकर हे बुद्धिमान भव्यो तुम भी शम दम संयमसे एक धर्मका सेवन करो ॥ इस प्रकार श्री सकलकीर्तिदेनानिरनित महावीर पुराणमें नंदराजाको तपके फलसे
अच्युतेन्द्र होनेको कहनेवाला छठा अधिकार पूर्ण हुआ ॥ ६ ॥