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________________ वह चक्री मिथ्यात्वादि सव परिग्रहोंको छोड़ मुक्ति देनेवाली अर्हतकी कही दीक्षाको मुक्तिकेलिये ग्रहण करता हुआ । वह अर्हतकी दीक्षा तीन लोक में देव तिर्यंच और मिथ्यात्वी मनुष्योंको दुर्लभ है । उस चक्रीके साथ संवेगादि गुणोंवाले हजारों राजा भी दीक्षित होगये । फिर महामुनि महान शक्तिसे प्रमाद रहित हुआ दो प्रकारका कठिन तप करता हुआ । मूलगुण और उत्तर गुणोंको अच्छी तरह पालता हुआ । निर्मल अभिप्रायवाला वह मुनि मनवचन कायकी गुप्तिसे कर्मोंके आस्रवको रोकता हुआ। वह मुनि निर्जनवन पर्वत गुफा आदिमें ध्यान लगाता था और अनेक देश नगर ग्रामादिकों में विहार करता था । 1 भव्यजीवों के हित चाहनेवाला वह मुनि मनुष्यदेवोंकर पूजनीक जैनधर्मके तत्वोंका उपदेश करता हुआ जैनमतकी प्रभावनाको फैलाता हुआ । परमार्थको जाननेवाला वह योगी आयुके अंतमें चार प्रकारके आहारोंको छोड़ मनवचनकाय योगोंको रोककर संन्यास धारण करता हुआ । अपनी सामर्थ्यको प्रगट करके क्षुधा प्यास आदि बाईस परिपहोंको प्रसन्नचित्त होके सहता हुआ । अर्हत भगवानमें ध्यान लगानेवाला वह हरिपेण मुनीश्वर चारों आराधनाओंको अच्छी तरह सेवन करके सावधानतासे प्राणीको छोड़ता हुआ ।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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