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वोंके सक कर्मोंकी निर्जरा तपसे होती है ऐसाः जानकर निष्पाप तप करना चाहिये । वास्तवमें इस तीन जगत्को दुःखोंसे भरा हुआ देख अनंतसुख देनेवाली मोक्षकी प्राप्तिके लिये संजमको सेवन करो । मनुष्यजन्म उत्तम कुल आरोग्यता पूर्णआयु सुधर्म इत्या-| दिका मिलना कठिन समझकर हे बुद्धिमानो तुम अपने हित करनेमें अच्छीतरह यत्न करो । तीन लोककी लक्ष्मी और सुखका करनेवाला संसारके पाप और दुःखोंका
नाश करनेवाला ऐसा श्री केवली भगवान्का उपदेशा हुआ धर्म ही सब तरहसे पालालन करो। वह धर्म सम्यक्त्व ज्ञान चारित्र तपके योगसे व क्षमा आदि दश लक्षणोंसे होता ही मा है उससे मोहकी संतानका नाश करके मोक्षके अभिलाषी जीवोंको मोक्षप्राप्तिके लिये हा विधिपूर्वक आचरण करना चाहिये । सुखी पुरुपको अपने सुखकी वृद्धिके लिये और 3 Marदुःखी जीवको दुःख नाश करनेके लिये धर्मका सेवन अवश्य करना चाहिये। । Ki संसारमें वही पंडित है वही बुद्धिमान् है वही सुखी है वही जगत्पूज्य है वही!
महान पुरुपोका गुरु है । जो कि अन्य सब कार्योको छोड़ पहले अनेक निर्मल आचर
णांसे धर्मका सेवन करता है। तीन जगत्को तथा अपनी आयुको विनाशीक जानकर बुद्धिA/मानको चाहिये कि घरको सांपके समान छोड़कर तृष्णारहित धर्म पालन करे। इस प्रकार
भगवान्की दिव्यध्वनिसे वह चक्रवर्ती तीन जगतको अनित्य समझकर अपने शरीर व