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कर ऊपर आता हुआ फणींद्रका ( भवनवासीदेव ) का ऊंचा भवन देखा। पंद्रहवां स्वम रत्नोंकी राशि देखी उसकी किरणोंसे आकाश प्रकाशमान होगया था । सोलवें स्वप्नमें वह जिनमाता दैदीप्यमान धूआं रहित अग्नि देखती हुई ।
उन सोलह स्वशोंके देखनेके बाद उस त्रिसला महारानीने पुत्रके आगमनका सूचक ऊंचे शरीरवाला उत्तम हाथी मुखकमलमें घुसता हुआ देखा । तदनंतर प्रातःकाल | ( सवेरा) होते ही तुरई वगैरः वाजे वजने लगे और उसके जगाने के लिये बंदीजन स्तुतिपाठ करते हुए । कोइलकेसे कंठवाले वे बंदीजन मंगलगीत गाते हुए कहने लगे, हे देवि जगनेका समय ( टाइम) तेरे सामने आकर उपस्थित हुआ है । हे देवी शय्याको छोड़ और अपने योग्य शुभरूप कार्यकर जिससे तू जगत् में सार सव कल्याणको पावेगी ।
प्रातःकाल के समय समता सहित चित्तवाले कोई श्रावक तो सामायिक करते हैं, जो कि कर्मरूपी वनको जलाने के लिये आग के समान है । कोई शय्यासे उठकर सब विघ्नोंके नाश करनेवाले लक्ष्मीशुखको देनेवाले अर्हतादि पंच परमेष्ठीके नमस्काररूप मंत्रको जपते हैं । दूसरे महाबुद्धिमान् तत्त्वों का स्वरूप जानकर मनको रोकके कम के नाश करनेवाले सुखके रामुद्र ऐसे धर्मध्यानको सेवन करते हैं । अन्य कोई धीरजधारी मोक्षकी मासिके लिये शरीरसे ममता छोड़ व्युत्सर्ग तप धारते हैं, जो तप कमका नाशक और