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सोहागरात या बहूरानी को मीख क रचयिता कृभाकान्त मालवीय र मित्रा न उन्हे सुझाया कि अपने निवेदन में द्विवेदी जी ने श्राप पर आप किया है । अभिनन्दनोत्सव के ममय द्विवेदी जी ने पं. मदनमोहन मालवीय को बोलने का समय नहीं दिया था। सम्भवतः इस कारण भी कृष्णकान्त मालवीय द्विवेदी जी में असन्तुष्ट थे । उन्होंने ४५ जन १६३३ ई० के 'भारत' में 'मेरी रसीली पुस्तकें लेख लिखा जिसमें द्विवेदी जी की उक्रिया का ग्वंइन किया--... द्विवेदी जी की इन बातों को पढ़कर विद्वानों की दृष्टि में हिन्दी के विद्वानों का मान कम होगा, वे कहेंगे कि ये कहा पड़े हुये हैं । संक्म के माहित्य को ये पाप और पंकपयोधि समझते हैं । द्विवेदी जी इस अवसर पर यह सब वहकर जब कि चारो अोर से विद्वानो की दृष्टि उनकी और फिरी हुई थी, हिन्दी-साहित्यसवियों की हंसी न कराते, उन्हें कपमट्टक न सिद्ध करते तो अच्छा था। हिन्दी वाले जिन्हे प्राचार्य कहकर पूजते हैं, उसके विचार ये है. यह जानकर मंमार व्या कहेगा ?" ___ मालवीयजी का यह आक्षेप अतिरंजित और असंगत था। अपनी 'मोहागरात' के प्रति द्विवेदी जी को किसी भी प्रकार की दृढ़ीभूत धारणा रखने का अधिकार था । और उनकी पुस्तक को देखे या उसके विषय में ज्ञान प्राप्त किए बिना उसको आलोचना करना मालवीय जी की अनधिकार चेष्टा थी । इममे तनिक भी मन्देह नहीं कि यदि उनकी 'माहागरात' प्रकाशित हो जाती तो वे साहित्य के पंकपयोधि मे डूब जाते । यदि मालवीय जी उनकी पुस्तक देख लिए होते तो इस प्रकार की लोचनहीन अालोचना कदापि न करते।
द्विवेदीजी ने ईट का जवाब पत्थर मे दिया । २४ २५ जून, ३३ ई० के 'भारत' में उन्हाने 'क्षमाप्रार्थना प्रकाशित की जो श्रायोपान्त व्यंग्योक्तियो और व्यक्तिगत आक्षेपों में व्याप्त थी। 'मोहागरात या बहूरानी की सीख' के नामकरण, उसके लेखक के उद्देश्य आदि की अालोचना तीखी अतएव अप्रिय, किन्तु सत्य थी। बारम्बार क्षमाप्रार्थना करके अपने को मूर्ख और मालवीय जी को विद्वान्, अपने को टकापंथीं और उनको त्यागशील आदि कहकर उन्हे लजित करने का अमोघ प्रयास किया । २.७.३३ई० के 'भारत' में मालगोय जी ने 'क्षमाप्रा. थना का वितंडाबाद, प्रकाशित किया। उस प्रत्युतर में उन्होंने द्विवेदी जी के क्षमाप्रार्थना ढग की उचित आलोचना करके अन्त में निवेदन किया--" मैने जो कुछ लिग्वा उसके लिए मे श्राप से विनीतभाव से क्षमा मागता हूँ। ..'अाशा है आप उदारता से विचार करेंगे और यह भव लिम्वन के लिए मुके क्षमा कर देंगे अब इस सम्बन्ध में मैं कुछ लिखंगा भो नहीं।"
द्विवटी जी ने उनकी प्रार्थना मौनमा म स्वाकार कर ली