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दौलतपुर म प्रतिदिन प्रात काल उठ कर शौचादि स निवृत्त होकर कुछ दूर खेतो की ओर टहलत थ लौट कर सफा परत थ फिर बारह बज तक आवश्यक चिट्ठी पत्रिया का उत्तर देने, मम्मत्यर्थ श्राई हुई पुस्तको और दो चार समाचार पत्रों का अवलोकन करते थे। दोपहर के समय पुनः शौच को जाते और तब स्नान करते थे । भोजनोपरान्त पत्रपत्रिकाएं पढते थे। प्रायः दो बजे के बाद मुकदमे देवते थे। मुकदमो के अभाव में किचित् विश्राम करके अखबार भी पढ़ा करते थे । सन्ध्या समय चार बजे के बाद अपने बागो और खेतों की श्रोर धूमने जाते, लौट कर थोड़ी देर तक द्वार पर बैठते, कोई आ जाता तो उसने बातें करते, तदनन्तर सोने चले जाते थे। १
यदि कभी उनके मुँह से यह निकल गया कि श्राप के घर अमुक दिन अमुक समय पर अाऊँगा तो विघ्नसमूहों के होते हुए भी वचन का पालन करते थे । ज्येष्ठ माम के अपराह्न में भयंकर लू की अवहेलना करके कानो में डुपट्टा लपेटे,छाता लिए हुए ढाई कोम पैदल चल कर देवीदन शुक्ल के घर पहुँच जाया करते थे। ३ ।।
एक बार एक बाई सी. एन. महोदय उनमे मिलने गए। द्विवेदी जी का मिलने का समय नहीं हुआ था। उन महाशय को याचे बटे प्रतीक्षा करनी पडी। एक साधारण व्यक्ति के अमाधारण कार्यक्रम पर वे अत्यंत अग्रसन्न हुए । द्विवेदी जी ने इसकी तनिक भी परवाह न की। कदाचित् इसी के परिणामस्वरूप जिलाधीश महाशय ने द्विवेदी जी को, 'सरस्वती' के विज्ञापनो के बहाने, दड देने का अमफल प्रयास किया था। 3 बाबू चिन्तामणि घोष ने द्विवेदी जी की प्रशंसा करते हुए एक बार कहा था---'हिन्दुस्तानी सम्पादकों में मैने वक्त के पाबन्द और कर्नव्यपालन के विषय में दृढप्रतिज दो ही श्रादी दखे हैं, एक तो रामानन्द बाबु और दूमरे ग्राप ।' ४
द्विवेदी जी की असामान्य सफलता का एक मात्र रहस्य है उनका दृढ़ संकल्प और अध्यवसाय । एक अकिचन ब्राह्मण की सन्तान ने, जिमके घर में पेट भरने के लिए भोजन और तन ढकने के लिये बन नहीं था, चौथाई शताब्दी तक दम करोड जनता का एकातपत्र
१. 'द्विवेदी-मीमांसा', पृ० २१८ । २ 'सरस्वती', भाग ४०, सं० २, पृ० २०५ । ३. इसकी चर्चा आगे चल कर 'साहित्यिक संस्मरण' अध्याय में की गई है। ४ द्विवेदी-लिग्वित 'बाबू चिन्तामणि घोप की स्मति'
सरस्वती ५१०ई० बर २ प० २८२