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[ ५८ ] उसी वर्ष की सरस्वती | पृष्ट ३२ म सठ हैपाल ल पोद्दर का वि और चय लेख छपा जिसमे उन्होंने संस्कृत श्राचार्यो के मतानुमार कधि और काव्य की रूपरेखा का चित्र खीचा । जैसा ऊपर कहा जा चुका है १६.३ ई से द्विवेदी-युग श्रारम्भ हुश्रा उसमें सभी विषयों पर सैद्धान्तिक अालोचनाएँ लिम्वी गई। भारतेन्दु-युग ने अपने को छन्द, अलंकार आदि के बन्धन से मुक्त करने का प्रयास किया था परन्तु वह अधूरा ही रहा । उन रीतिकालीन बन्धनों का प्रभाव द्विवेदी-युग के पूर्वाद्ध मे भो बना रहा । परिवर्तनशील परिस्थितियों और द्विवेदी जी की श्रादर्श भावनाओं के परिणामस्वरूप द्विवेदी-युग के उत्तरार्द्ध में उनका प्रभाव नष्ट होगया ।
संस्कृत-आचार्यों के अनुकरण पर पिगल, रम, अलंकार और नायक-नायिका भेद पर सामयिक पत्रों में प्रकाशित लेखो के अतिरिक्त अनेक ग्रन्थों को रचना हुई। हरदेवप्रसाद ने विमल वा छन्दपयोनिधि भाषा' (मं० १९८३), कन्हैयालाल मिश्र ने 'पिगलसार ( द्वितीय सं० १६११ ई०), जगन्नाथप्रसाद भानु ने 'काव्यप्रभाकर' (सं० १६६६), और 'छन्दः सारावती' (१९१७ ई०), बलदेवप्रसाद निगम ने 'श्यामालंकार' (१९६७', बाबूराम शमा ने काव्य प्रदीपिका' ( मं० १६६७), मागीलाल गुप्त ने 'भाषा पिगल' ( स० १९६७ ) रामनरेश त्रिपाठी ने पद्य प्रबोध' ( १६१३ ई०) और हिन्दी पद्य रचना' ( १६७४ वि०) बिनायकराव ने 'काव्य-कुसुमाकर',' पुत्तनलाल विद्यार्थी ने 'सरल पिंगल' और वियोगी हरि ने 'वृत्तचन्द्रिका' (१६७६ वि०) नामक पुस्तके लिग्त्री। इन पुस्तको में छन्दःशास्त्र के नियमों का संक्षिप्त निरूपण किया गया। रम और अलंकार के क्षेत्र में 'रस बाटिका',२ 'ममास-बिवरण', 'काव्यप्रवेश', 'अलंकार-प्रबोध', 'अलंकार प्रश्नोत्तरी', 'हिन्दीकाव्यालंकार', 'प्रथमालंकार-निरूपण', 'नवरस', 'अदित साहित्य दर्पण',१° 'साहित्य
१. प्रथम भाग, सं० ११७३ और द्वि० भाग १६१६ ई. ! २, गंगाप्रसाद अग्निहोत्री, सं० १९६० । ३. अध्यापक रामरत्न । ४. अध्यापक रामरग्न, सं० १६७६ । ५. अध्यापक रामरत्न सं० १६७४ । ६. जगन्नाथ प्रसाद साहित्याचार्य, १११८ ई०। ७. जगन्नाथ प्रसाद साहित्याचार्य, १९१८ ई.।. ८. चन्द्रशेषर शास्त्री, १६७६ वि० ।
स० १३७० 1. श शास्त्री स. ११७८