________________
। ३३४ । सत्यदेव श्रादि की रचनाओं म उपयुक्त दोनों वृत्तिया का समन्वय ह न के कारण गानागरिका वृत्ति का प्रयोग हुआ है।
द्विवेदी-युग की भाषा-शैली के निम्नाकित सात वर्ग किए जा मक्ते हैं:-- वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, चित्रात्मक, वक्त तात्मक , स्लापात्मक, विवेचनात्मक और भावात्मक । राम नारायण मिश्र, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, सत्यदेव श्रादि के भौगोलिक लेखा, काशीप्रमाद जायसवाल, रामचन्द्र शुक्ल, लक्ष्मीधर बाजपेयी आदि के द्वारा लिखित जीवनचरित्रा प्रेमचन्द, विश्वम्भरनाथ शर्मा, बृन्दाबनलाल वर्मा आदि की अधिकांश कहानियो, यशोदा नन्दन अखौरी, वेंकटेश नारायण तिवारी, रामावतार पाडेय यादि के कथात्मक निबन्धी
और मिश्रबन्धु आदि की परिचयात्मक अालोचनाश्रो की भाषा-शैली वर्णनात्मक है । इम शैली की विशेषता यह है कि लेखको ने शब्द-चयन में किसी एक ही भाषा के शब्द-ग्रहण और अन्य भापात्रो के शब्दो के बहिष्कार का अाग्रह नहीं किया है। श्रावश्यकतानुसार उन्होंने किसी भी भाषा के शब्द को निस्संकोच भाव से अपनाया है। भावव्यंजना अन्यन्त सरत और सुबोध हुई है। किसी भी प्रकार की क्लिष्टता या जटिलता अर्थ ग्रहण में बावक नहीं है।
व्यंग्यात्मक शैली द्विवेदी-युग की भाषा की प्रमुख विशेषता है। द्विवेदी-युग के सम्पादका और बालोचको-बालमुकुन्द गुप्त, गोविन्द नारायण मिश्र, लक्ष्मीधर वाजपेयी श्रादि-के अतिरिक्त धर्म प्रचारको ने भी इस शैली का अतिशय अबलम्बन किया । द्विवेदी-सम्बन्धित अनेक वाद-विवादों की चर्चा प्रस्तुत ग्रन्थ के साहिन्यिक संस्मरण' अध्याय में हो चुकी है। उन वाद-विवादो और शास्त्रार्थ-पद्वति पर की गई आलोचनानी मे व्यंग्यात्मक शैली का पूरा विकाम हुआ है। इस शैली की विशेषता यह है कि लेखको ने किसी बात को सीधे सादे स्पष्ट शब्दो मे न कहकर उसे घुमा फिराकर लक्षणा और व्यंजना के द्वारा व्यक्त किया है । यह शैली कहीं तो अक्षेप-प्रक्षेप मे पूर्ण है, यथा उपर्युक्त विवादा में और कहीं काव्योपयुक्त ध्वनि के रूप में प्रयुक्त हुई है यथा गद्य काव्यो, नाटको नादि में । भावना की गहनता और कोमलता के अनुसार ही विवादों में अन्य भाषाओं के भी चुभते हुए शब्दों का लछमार प्रयोग किया गया है किन्तु दूसरे प्रकार की रचनाओं में संस्कृत की भावपूर्ण और क पदावली क ही प्राय व्यवहार हुअा है