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निबन्ध
द्विवेदी-युग में गद्यविकास के साथ ही निबन्ध-साहित्य का अच्छा विकास हुआ। द्विवेदी जी के निबन्धो की भाँति उम युग के निवन्ध भो चार रूपा मे प्रस्तुत किए गए। पहला रूप पत्रिकाओं के लिए लिखित लेखो का था। बालमुकुन्द गुप्त, गोविन्दनारायण मिश्र, रामचन्द्र शुक्ल, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी अादि लेखको के अधिकाश निबन्ध पत्रिकाओं के लेख रूप में ही प्रकाशित हुए और आगे चलकर उन्हें संग्रह-पुस्तक का रूप दिया गया । दूसरा रूप ग्रन्थो की भूमिकाओं का था ! इस दिशा में 'जायसी-ग्रन्थावली', "तुलसी ग्रन्थावली' [ द्वितीय भाग ] और 'भ्रमरगीतसार' की भूमिकाएँ विशेष महत्व की है। तोमग रूप भाषण! का था। द्विवेदा-युग में दिए गए हिन्दी-साहित्य सम्मेलन के सभापतियों के महत्वपूर्ण भाषण इसी रूप के अन्तर्गत हैं । उस युग के निबन्धा का चौथा रूप पुस्तको या पुस्तकों के आकार में दिखाई पडना है। उदाहरणार्थ-द्विवेदी जी का 'नाट्यशास्त्र' या जय शकर प्रमाद का 'चद्रगुप्त मौर्य ।'
द्विवेदी-युग ने वर्णनात्मक, भावात्मक और चिन्तनात्मक सभी वर्ग के निबन्धों की रचना की । वर्णनात्मक निबन्धो के मुख्य चार प्रकार थे - वस्तुवर्णनात्मक, कथात्मक, यात्मकथात्मक और चरितात्मक । वर्णनात्मक निवन्धो में निवन्धकार ने तटस्थ भाव से अपने या दूसरों के शब्दों में अभीष्ट विषय का वर्णन किया । उसमें उसने हृदय या मस्तिष्क को अभिभूत कर देने वाली भावविचार व्यंजना नहीं की । वस्तुवर्णनात्मक निबन्धो मे किसी जड़ या चेतन पदार्थ का परिचयात्मक निरूपण किया गया, उदाहरणार्थ 'इंगलैंड की जातीय चित्रशाला',' सोना निकालनेवाली चीटियारे श्रादि । कथात्मक निबन्धा मे लेन्वक ने श्रीमद भागवत की कथा सुनाने वाले व्यास जी की भाति निबन्ध पाठको का मनोरंजन करने का प्रयास किया है, यथा 'स्वर्ग की झलक', 3 'एक अलौकिक घटना'४ अादि । इन कथात्मक निबन्धी और आधुनिक वर्णनात्मक लघु कहानियों में अन्तर यह है कि कहानिया मे कहानीकार ने कहानी की सीमा के अन्तर्गत रहकर विश्लेषण और बस्तु-विन्याम की अोर विशेष ध्यान दिया है किन्तु निबन्धकार प्राद्योपान्त ही स्वच्छन्द गति में चला है । इन दोनों के विकाम के प्रारम्भिक रूपा में एकता है और एक ही रचना दोनी कोटियां में रखी जासकती है यथा इत्यादि की अात्मकहानी' । आत्मकथात्मक निबन्ध भी द्विवेदी-युग के साहित्य की मनोहर देन हे । इन निबन्धों में वरीय
१. काशीप्रसाद जायसवाल, 'सरस्वती', भाग-, पृष्ठ ४६६ ।
२. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी 'सरस्वती' भाग ५६, खंड २, पृष्ठ १३४ । ___३. महावीरप्रसाद, सरस्वती', भाग ५, पृष्ठ ८२।। ___ राजा पृथ्वीपाबसिंह, 'सरस्वती' माग ५ पृष्ठ ३१५