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का बाहुल्य और मनोवैज्ञानिक चित्रण तथा अध्यातरिक विश्लेषण का अभाव होन के रसा कहानी की श्रात्मचरित शैलो का माहित्यिक और बलात्मक प्रयोग इन दोनों रूपो मे नही हो सका है। आत्मचरित प्रणाली का तीसरा प्रकार विश्लेषणात्मक है। विश्लेषणात्मक कहानियों में लेखक ने कहानी के पात्र के मुख मे ही वस्तु विन्यास कराया है और मानव जीवन के किसी न किसी पक्ष की व्याख्या की है। विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की 'अधेरी दुनिया' और 'कवि की स्त्री तथा प्रेमचन्द की 'शान्ति' श्रादि कहानियाँ इसी कोटि की हैं।
कथात्मक प्रणाली के दो अप्रचलित रूप और भी हैं-पत्र पद्धति और देनन्दिनी-पद्धति उदाहरणार्थ क्रमशः 'देवदासी' ( जयशंकर प्रसाद ) और 'विमाता का हृदय ।। कहानीकला की दृष्टि से ये दोनों ही रूप अवाछनीय हैं । मंवेदना की तीव्रता न होने के कारण इस प्रकार की कहानियाँ प्रभावोत्पादक नहीं हो पाती और उनका उद्देश ही अधूरा रह जाता है ।
द्विवेदी-युग के ऋहानी साहित्य की दूसरी व्यापक शैली काव्यात्मक है। इसके प्रायः दो प्रकार परिलक्षित होते है-~-वस्तु चमत्कार प्रधान और भाषा-चमत्कार प्रधान । पहले प्रकार की कहानियों के पात्र प्रायः नवयुवक, कल्पनायुक्त, भावुक, श्राशावादी और प्रेमपीडित होते हैं । घटनायो का अधिकाश कल्पनाजन्य और सारा वातावरण ही काव्यमय होता है । भाषा कवित्वपूर्ण होते हुए भी निग्लंकार है। रसिया बालम',२ 'कानोंमें कंगना 3 'दिनों का फेर', 'चित्रकार ५ सच्चा कवि'६ अादि भावात्मक कहानियाँ इमी काव्यात्मक शैली की हैं । भाषा चमत्कारप्रधान काव्यात्मक कहानिया के लेखको ने वस्तु-चमत्कार योजनाके साथ ही भाषा को अलंकृत करने और कवित्वपूर्ण बनाने का विशेष प्रयास किया । हिन्दी-कथा-साहित्य वे बाणभट्ट चण्डीप्रसाद हृदयेश इस शैली के प्रमुख कहानीकार हैं। उनकी 'मुधा', 'शान्ति निकेतन' श्रादि कहानियों में भाव की अपेक्षा भाषा की रमणीयता ही अधिक श्राकर्षक है। इम काव्यात्मक पद्धति पर कभी कभी रूपक-प्रणाली का आश्रय लेकर छोटी छोटी मार्मिक कहानियो की रचना की गई, उदाहरणार्थं अज्ञेय की 'अमर बल्लरी' सुदर्शन की 'कमल की वेटी', रायकृष्णदास की 'परदे का प्रारम्भ' श्रादि । इन
१. श्राधुनिक हिन्दी कहानियां' में संकलित । २. प्रसाद, 'इन्दु', एप्रिल, १९१२ ई० । ३ राधिकारमण प्रसाद सिंह. 'इन्दु', कला, खंड २, किरण ५ । ४ गयकृष्ण दास, 'प्रभा', वर्ष २, खंड २ । ५. कृष्णानन्द गुप्त, 'प्रभा', वर्ष ३, खंड १ ।
रामो कौशिक' 'माधुरी' वर्ष ३ खर १