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पूर्व उनका प्रयाग मात्र हुआ था । द्विवेदी जी ने उनकी रचना की प्रोत्साहन दिया ।' द्विवेदी सम्पादित 'सरस्वती' निबंवों से भरी हुई हैं, उदाहरणार्थ १६१०ई० की 'सरस्वती'
प्रकाशित मैथिलीशरण गुप्त की 'कीचक की नीचता', 'कुन्ती और कर्ण' श्रादि । ये पद्म कभी तो खंडकाव्य की पद्धति पर एक ही छन्द में लिखे गए, जैसे उपयुक्त 'कुंती और कर्ण', कभी गात प्रबंध के रूप में अनेक छन्दो का सम्मिश्रण था, यथा लाला भगवानदीन का 'वीर पंचरत्न' और कभी पत्र गीतों के रूप में जैसे मैथिलीशरण गुप्त की 'पत्रावली' ।
प्रबन्ध काव्य का दूसरा रूप खण्ड काव्य था । खड़ी बोली के अधिकाश सुन्दर खण्ड काव्य द्विवेदी युग में ही लिखे गए, उदाहरणार्थ मैथिलीशरण गुप्त के 'जयद्रथ वध' ( १६१० ई० ) 'किसान' (सं० १६७४ ) और 'पंचवटी' (स० १६८२ ) रामनरेश त्रिपाठी का 'पथिक' ( १६२० ई० ), प्रसाद का 'प्रेम पथिक' ( १६१४ ) सियारामशरस् गुप्त का 'मौर्य विजय' (सं० १९७१ ), सुमित्रानन्दन पंत कृत 'ग्रन्थि ' ( १६२० ई० ) आदि | are nor का तीसरा रूप महाकाव्य था । खडी बोली के प्रथम दो महाकाव्य 'मित्र प्रवास' (सं० १६७१ ) और 'साकेत' (अधिकाश मं० १६८२ तक ही लिखित किन्तु ग्रन्थ १६८८ वि० में प्रकाशित ) द्विवेदी युग में हो लिखे गये। संस्कृत आचार्यों के are हुए महाकाव्य के सभी लक्षण इन ग्रन्थों में नहीं पाए जाते तथापि ये महान काव्य होने के कारण महाकाव्य अवश्य हैं।
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द्विवेदी युग की कविता का दूसरा विधान मुक्तक रचना के रूप में हुया । मुक्तक रचना मूल में कवियों की अनेक प्रवृत्तियों काम कर रहा थी। पहली प्रवृत्ति सौन्दर्य व्यंजना की थी। उन कवियों की सौन्दर्यविषयक इयत्ता भी अपनी थी। उनकी यह प्रवृत्ति कहीं ती आकारिक आदि चमत्कार के रूप में, कहीं उक्ति वैचित्र्य के रूप में और कहीं मार्मिक अनुभूति की हृदयहारी अभिव्यक्ति के रूप में फलित हुई । दूसरी प्रवृत्ति समस्यापूर्ति की थी" तीसरी प्रवृत्ति उपदेशक की थी। यह तीन रूप में व्यक्त हुईं। कहीं सीधे उपदेश १. "समस्यापूर्ति के विषय को छोड़कर, अपनी इच्छा के अनुसार विषयों को चुनकर, afa को यदि बड़ी न होसके तो छोटी ही स्वतंत्र कविता करनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार stafari at हिन्दी में प्राय अभाव है।"
द्विवेदी जी - रसनरंजन', पृष्ट १३ ।
२. उदाहरणार्थ 'उजू वशतक' आदि
३. 'घुमते 'चौपदे' आदि ।
४. गोपालrantee का 'व्रजवर्णन', वह छवि' आदि ( 'माधवी' में संकलित ) ।
५. उदाहरणार्थ राजनैतिक कविता के संदर्भ में उद्धृत नाथूराम शर्मा की अकत है की