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उपयुक्त मुधारों और उत्कर्षों के होते हुए भी 'सरस्वती' का मान विशेष ऊवा न हो सका। उसके प्रतिज्ञा-वाक्य और योजनाएँ यथार्थता का रूप धारण न कर सकी । विषय, भाषा, पाठक, और लेखक-सभी की दशा शोचनीय बनी रही। १६०२ ई० के अन्त में श्याममुन्दर दास ने भी सम्पादन करने में असमर्थता प्रकट की। उन्होने सम्मति दी, बाबू चिन्तामणि घोष ने प्रस्ताव किया और पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती' का सम्पादन स्वीकार कर लिया।
जनवरी १६०३ ई० से द्विवेदी जी ने सम्पादन प्रारम्भ किया । पत्रिका के अग-अंग में उनकी प्रतिभा की झलक दिखाई पड़ी । विषयो की अनेक-रूपता, वस्तुयोजना, सम्पादकीय टिप्पणियो, पुस्तक-परीक्षा, चित्रो, चित्र-परिचय, साहित्य-समाचार के व्यंगचित्रो, मनोरजक सामग्री, बाल-वनितोपयोगी रचनायो, प्रारम्भिक विषय-सूची, प्रफ-संशोधन और पर्यवक्षण में सर्वत्र ही सम्पादन-कला-विशारद द्विवेदी का व्यक्तित्व चमक उठा।
तत्कालीन दुर्विदग्ध मायावी सम्पादक अपने को देशोपकारबती, नानाकला-कौशलकोविद नि:शेप-शास्त्र-दीक्षित, समस्त-भाषा-पंडित और सकलकला-विशारद समझते थ । अपने पत्र में वे बेसिरपैर की बातें करने, रुपया ऐठने के लिए अनेक प्रकार के वंचक विधान रचते, अपनी दोपराशि को तृणवत् और दूसरों की नन्ही सी त्रुटि को मुमरु समझ. कर अलेख्य लेखा द्वारा अपना और पाठको का अकारण समय नष्ट करते थे । निस्सार निद्य लेखा को तो सादर स्थान देते और विद्वानों के सम्मान्य लेखों की अवहेलना करते थे। श्रालोचनार्थं आई हुई पुस्तकों का नाममात्र प्रकाशित करके मौन धारण कर लेते और दृस्रो की न्याय-सगत समालोचना की भी निदा करते । दूसरे पत्रो और गुस्तको से विषय चुराकर अपने पत्र की उदरपूर्ति करते और उनका नाम तक न लेते थे । पत्रोत्तर के समय परे मौनी बन जाने, स्वार्थवश परम नम्रता दशाने और अपने दोप की निदर्शना देखकर प्रलयंकर हर का-सा उग्र रूप धारण कर लेने थे । भली-बुरी औषधियो, गई-बीती पुस्तको और सभी प्रकार के कूड़ा-करकट का विज्ञापन प्रकाशित करके पत्र-साहित्य को कलंक्ति करते थे। अपनी स्वतंत्रता, विद्या और बल का दुरुपयोग करके अपमानजनक लेख छापते और फिर भय उपस्थित होने पर हाथ जोडकर क्षमा मागत थे।"
सम्पादन-भार ग्रहण करने पर द्विवेदीजी ने अपने लिए मुख्य नार आदर्श निश्चित पिए-समय की पाबन्दी करना, मालिको का विश्वास- भाजन बनना, अपने हानि-लाभ की परवाह न करके पाठकों के हानि-लाभ का ध्यान रखना और न्याय-पथ से कभी भी विचलित १ द्विवेदो लिखित और द्विवेदी काव्य-माला में सखित सम
के आधार पर