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[ १२ ] फसला सुनाने का अधिकार होता है ढग मम्यतापूर्ण और युक्ति-सगत होना चाहिए पाडिल्यमूलक अालोचना भूला के प्रदर्शन तक ही रह जाती है । प्रमुख बात तो अालोचक की वस्तूपस्थापन-शैली, मनोरंजकता, नवीनता, उपयोगिता प्राटि है । जिसके कार्य या ग्रन्थ भी ममालोचना करनी है उसके विपय मे समालोचक के हृदय मे अत्यन्त सहानुभूति का होना बहुत आवश्यक है । लेग्वक, कवि या ग्रंथकार के हृदय मे घुमकर समालोचक को उसके हर एक परदे का पता लगाना चाहिए । अमुक उक्ति लिखते समय कवि के हृदय की क्या अवस्था थी, उसका श्राशय क्या था, किस भाव को प्रधानता देने के लिए उसने वह उक्ति कटी थी-यह जब तक समालोचक को नहीं मालूम होगा तब तक वह उस उक्ति की आ नोचना कभी न कर सकेगा। किमी वस्तु प्रा विषय के सब अंगो पर अच्छी तरह विचार बग्ने का नाम समालोचना है । वह नवतक मभव नहीं जब तक कवि और समालोचक के हृदय में कुछ देर के लिए एकतान्न स्थापित हो जाय ।' व्यवहार के क्षेत्र में श्राकर समालोचको को अनेक बातो का ध्यान रखना पड़ता है। समाज के भय की चिन्ता न करके विचारो को स्वतन्त्रतापूर्वक उपस्थित करने का उनगे गुण होना चाहिए । उनका कथन स्पष्ट, सोद्देश्य, तर्कसम्मत और साधिकार होना चाहिए । आलोचन का लक्ष्य मत का निर्माण और रुचि का परिष्कार है। अनर्गल बातें और अत्युक्तिया तो सर्वथा त्याज्य हैं ।३ जहा पारस्परिक तुलना और श्रेष्ठता का प्रश्न हो वहा युग, परिस्थिति, व्यक्ति, लक्ष्य, कल्याणकारिता अादि पर भलीभाति विचार करना पड़ता है। अालोचक की तुली हुई और मयत भाषा मे गहरे चिन्तन एवं मूल्याकन का आभाम मिलना चाहिए । द्विवेदी जी ने अपने उपर्युक्त सभी सिद्धान्तो को कार्यान्वित करने का भरसक प्रयास किया परन्न युग की बढमुग्वी अावश्यकनायो ने पूर्ण सफलता म पाने दो। मकी समीक्षा प्रारी की जाय ।
टीकापद्धति ने सिद्धान्त का पता अालोच्य कृति को अधिक महत्व दिया है। मल्लिनाथ श्रादि कोरे टीकाकार ही न थे. समालोचक भी थे । टीका लिग्बते समय उन्होंने कवि के प्राशय को तो स्पष्ट करके बता दिया है, उसकी उक्तियों को विशेपताएं भी बताई हैं और रस, अलङ्कार, ध्वनि याटि का भी उल्लेख किया है । इम पद्धति ने रचनागत अर्थ और व्याकरणपन्न पर ही अधिक ध्यान दिया ! सम्भवतः संस्कृत के उम उत्थान-काल में काव्यजैमे सरल विषय की विस्तृत अालोचना अनपेक्षित समझी गई थी। रूपको के टीकाकारों १. 'कालिदास और उनकी कविता', पृ० ११२ । २ 'समालोचना-समुबा' 'हिन्दी नवन' १२ २११ २३३ के आधार पर ३ सम सिमुन्नय' हिटी नवरन प० २ ३५ के आधार पर