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महावीर, निश्चित ही नग्न रहे, इसमें कोई विकल्प नहीं है। उनकी काया को देखकर लगता है कि ऐसी सुन्दर काया वाला कोई व्यक्ति नहीं हुआ। ऐसी सुन्दर काया न बुद्ध के पास थो, न जीसस के पास थी और लगता है कि इतना सुन्दर होने की वजह से वे नग्न खड़े हो सके। असल में नग्नता को छिपाना कुरूपता को छिपाना है। हम सिर्फ उन्हीं अक्षों को छिपाते है जो कुरूप है। महावीर इतने सुन्दर थे कि छिपाने को कुछ भी नहीं था।
उनकी नग्नता उनके ज्ञान का अंग थी, उनके चरित्र का अंग नहीं थी। अगर किसी व्यक्ति को विस्तीर्ण ब्रम्हाण्ड से, मक जगत् से सम्बन्धित होना है तो वस्त्र एक बाधा है। जितने ज्यादा वस्त्र पैदा होते जा रहे हैं, उतनी ज्यादा बाधाएं बढ़ती जा रही हैं । नवीनतम वस्त्र चारों तरफ के वातावरण से शरीर को तोड़ देते हैं । जिस व्यक्ति को प्रम्हाण्ड से संयुक्त होना है, जड़ के साथ भी तादात्म्य स्थापित करना है, पशु जगत् को भी सन्देश पहुंचाना है, उसके लिए किसी तरह के वस्त्र बाधा बन जाएंगे।
• साधारणतः यह धारणा है कि अणुप्रत से महाव्रत फलित होता है । मगर गहराइयों पर उतरने से लगता है कि महावत हमारे भीतरी विस्फोट का परिणाम है । जब चेतना पूरी की पूरी विस्फोट होती है, तब महावत उपलब्ध होता है। वह मणुव्रतों से नहीं निकलता । साधारणत: कायक्लेश सम्बन्धी धारणाएं भी भ्रामक है। शरीर को सताना ही कायक्लेश तप माना जाता है। बिना नहाए-बोए, बिना खाए-पिए शरीर की दुश्मनी में तप माना जाता है। यही मोक्ष का उपाय समझा जाता है। एक भावमी सुबह घंटे भर व्यायाम करता है, पसीना बहाता है, अपने स्वास्थ्य के लिए। वह भी कायक्लेश कर रहा है लेकिन शरीर के हित में, शरीर के विरोध में नहीं। महावीर की सुन्दर काया को देखकर लगता है कि उन्होंने शरीर के हित में ही कायक्लेश किया। शरीर को संवारने में, शरीर के हित के लिए जो हम क्लेश उठाते हैं, सही अर्थों में वही कायक्लेश है। .
इसी प्रसंग में 'उपवास' का अर्थ भी देखें। उपवास का अर्थ है आत्मा • के निकट होना, अर्थात् व्यक्ति आत्मा में इतना लीन हो गया है कि शरीर का
पता नहीं चलता । लेकिन सामान्यतः इसे 'अनशन' का पर्याय समझ लिया गया है। इस भ्रान्त धारणाओं के कारण कायक्लेश मोर उपवास के सही प्रयों को नहीं समझा जा सका । उपवास बनशन से बिल्कुल उलटा है। उपवास.का मतलब है कि चेतना एकदम भीतर आत्मा के निकट पली जाए कि उसको बाहर