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________________ 'प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२ होकर शरीर भूल जाता है। वह दूसरी बात है, वह गौण बात है। अनशन हो जाएगा लेकिन वह दूसरी बात है। अनशन करने से उपवास नहीं होता, उपवास करने से अनशन हो जाता है। यह सब ख्याल में आ जाए तो महावीर की धारा के खो जाने का कोई कारण नहीं। और अगर जैन मुनि और साधु-संन्यासियों के हाथ में रही तो वह खो जाने वाली है। इसका कोई उपाय ही नहीं, और यह भी ध्यान रहे कि महावीर जैसा आदमी दुबारा पैदा होना मुश्किल है, एकदम मुश्किल है क्योंकि वैसे आदमी को पैदा होने के लिए जो पूरी हवा और वातावरण चाहिए, वह दुबारा असम्भव है। जैसा काल, जैसा चित्त चाहिए, वह दुबारा सम्भव नहीं है। मेरा मतलब है कि कोई आदमी कभी भी नहीं खोना चाहिए। जिसने कोई भी मूल्यवान् बचाया है, वह बचा रहना चाहिए ताकि उसके अनुकूल लोगों के लिए वह ज्योति बन सके । नरपुस्त्र नहीं खोना चाहिए, कनफ्युशियस नहीं खोना चाहिए, मिलरेपा नहीं खोना चाहिए। इन लोगों ने अलग-अलग कोणों से पहुंच कर ऐसी चीज पाई है जो बचनी ही चाहिए । मनुष्य जाति की असली सम्पत्ति वह है। लेकिन वे जो उसको खो रहे हैं, वही उसको बचाने वाले मालूम पड़ते हैं। वे जो उसके रक्षक है, वही उसको खोए दे रहे है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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