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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २ ६७ जैसे दिगम्बर जैन मुनि हैं। श्वेताम्बर जैन मुनि महावीर से बहुत दूर हैं क्योंकि उसने बहुत समझौते कर लिए हैं। इसलिए उसकी संख्या ज्यादा है । वह अभी भी हैं समझौते करके । दिगम्बर जैन मुनि ने समझौता नहीं किया, महावीर की प्रयोग किया। तो मुश्किल से बोस - बाईस गुनि है अगर एक मरता है तो फिर पूरा नहीं होता । जैसी बात थी ठीक वैसा ही पूरे मुल्क में । और हर साल अगर इक्कीस रह जाते हैं तो बाईस करना मुश्किल होता है । तीस पैंतोस वर्षों पचास साल बाद दिगम्बर जैन मुनि कोई राजी नहीं है। एक मरता है । नहीं ला पाते और में वे बोस - बाईस जैन मुनि मर जाएंगे। का होना असम्भव है । भाषा चली गई तो वे उसका पूरा नहीं कर पाते, दूसरे को रखे भी हैं उनमें से कोई शिक्षित नहीं है । लोग हैं, इसलिए राजी भी हैं। एक शिक्षित आदमी को, ठीक आधुनिक शिक्षा 'पाए हुए आदमी को, दिगम्बर जैन मुनि नहीं बनाया जा सका अब तक ह जिनको वे आज पुरानो सदी के यानी एक अर्थ में वे "बन " तो अशिक्षित, बिल्कुल कम - नहीं सकता । उसकी भाषा सब बदल गई है। · समझ के लोग, गांव के लोग, दक्षिण के लोग हैं, उत्तर का एक जैन मुनि नहीं है दिगम्बरों के पास । और वह भी आज क्यों नहीं बनता ? यानी वे भी सब पचपन वर्ष से ऊपर उम्र के लोग हैं जो बीस-पच्चीस वर्षों में विदा हो जाएंगे । एक मरता है तो दूसरा उसकी जगह नहीं ला पाते। वह भाषा मर गई । 'श्वेताम्बर मुनि की संख्या बची है, बढ़ती है, क्योंकि वह वक्त के साथ भाषा · को बदलता रहा है, समझौते करता रहा है। समझौते की तरकीबें निकालता रहा है। समझौते करके ही वह बचा हुआ है । जा रहा है। माइक से बोलना है तो वह माइक से बोलने लगेगा | यह करना है, वह करना है, वह सब समझौते कर रहा है । कल वह गाड़ी में बैठने लगेगा, परसों वह हवाई जहाज में उड़ेगा। वह सब समझौते कर लेगा। वह समझौते करके ही बच रहा है। लेकिन समझौते करने में उसका महावीर से कोई - सम्बन्ध नहीं रह गया । . और वह रोज समझौते करता साधना है वह मैं यह कह रहा हूँ कि भविष्य के लिए, महावीर की जो सार्थक हो सकती है और एक ही उपाय है कि उसे भविष्य की भाषा में सिर्फ पूरा का पूरा रख दिया जाए। मैं कहता हूँ कि समझौता जीवन में मत करो । जीवन में समझौता बेईमानी है। समझौतां ही बेईमानो है असल में । प्रत्येक युग में जब नई भाषा बनती है तो भाषा बदलती | नए शब्द चुनेंगे नई दृष्टि चुनेंगे, नया दर्शन चुनेंगे। और मूल साधना का सूत्र ख्याल में न रह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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