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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में लिड़की के बाहर खड़ा होकर देखेंगे। तो मुझे बुद्ध और महावीर में कोई फर्क नहीं दिखाई पड़ता, लेकिन मकान के बाहर खड़े हों तो ही, नहीं तो फर्क है क्योंकि फर्क खिड़की से निर्मित होता है जिससे वह कूदे। वह खिड़की हमारी नजर में रह गई, वह बिल्कुल अलग है। महावीर का ढंग है-अत्यन्त संकल्प का । यानो महावीर कहते हैं कि अगर किसी भी चीज में पूर्ण संकल्प हो गया है तो उपलब्धि हो जाएगी। बुद्ध को बिल्कुल और ही बात है। बुद्ध कहते हैं : संकल्प तो संघर्ष है। संघर्ष से कैसे सत्य मिलेगा ? संकल्प छोड़ो, शान्त हो जाओ। संकल्प ही मत करो तो उस शान्ति में ही सत्य मिलेगा। यह भी ठीक है। यह भी एक खिड़की है । ऐसे भी मिल सकता है। और महावीर भी कहते हैं, वह भी ठीक है । वैसे भी मिल सकता है। . हम इस तरह विचार करें कि अलग-अलग मूर्तियां जो बनीं, अलग-अलग मन्दिर बने, मस्जिदें खड़ी हुई, उनके अलग-अलग प्रतीक हुए, अलग भाषा बनी, अलग कोर बना तो वह बिल्कुल स्वाभाविक था। और फिर भी कोई अलग नहीं है। यानी कभी न कभी एक मन्दिर दुनिया में बन सकता है जिसमें हम क्राइस्ट की, बुद्ध की, महावीर की एक सी मूर्तियाँ ढालें। इसमें कोई कठिनाई नहीं। लेकिन बड़ी कठिनाई यहीं मैं कह रहा हूँ मापसे कि यदि आप महावीर से प्रेम करते हैं तो आप क्राइस्ट की मूर्ति महावीर जैसी ढालेंगे और अगर आप क्राइस्ट से प्रेम करते हैं तो आप महावीर की मूर्ति क्राइस्ट जैसी ढालेंगे। तब फिर बात गड़बड़ हो गई। अगर क्राइस्ट को प्रेम करने वाला आदमी महावीर की मूर्ति ढालेगा तो सूली पर लटका देगा। क्योंकि अभी वह 'कोड' और लैंग्वेज (भाषा) पैदा नहीं हो सकी जो सारी मूर्तियों में काम आ सके । लेकिन वह भी हो सकता है। बहुत दिनों तक, बुद्ध के मरने के बाद बुद्ध की मूर्ति नहीं बनी क्योंकि बुद्ध ने इन्कार किया है कि मूर्ति बनाना मत। और मूर्ति की जगह केवल प्रतीक चला-बोधिवृक्ष । सात-आठ सौ वर्ष बाद धीरे-धीरे अकेला वृक्ष-प्रतीक रखना मुश्किल हो गया। और बुद्ध की मूर्ति वापस आ गई। अगर हम झांकना चाहें सबके भीतर, समान के लिए, तो हमें मूर्ति मिटा देनी पड़ेगी। फिर हमें एक नया कोड विकसित करना होगा। . जैसे मुहम्मद की कोई मूर्ति नहीं है। और उस कोड के विकास करने में एक प्रयोग है ब्रह, और वह हिम्मत का है। बुद्ध की मूर्ति नहीं थी परन्तु पांच-छः सौ साल में हिम्मत टूट गई और मूर्ति आ गई। मुसलमानों ने बड़ी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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