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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२५ ७३७ जाए तो हम परम दुःख पाएंगे। लेकिन हम यही समझते हैं कि हम इसलिए दुःख पाते हैं कि हमारी इच्छाएं पूरी नहीं होती। _____टालस्टाय ने एक कहानी लिखी है। एक बाप की तीन बेटियां है। तीनों की अलग-अलग जगह शादियां हो गई है। एक लड़की किसान के घर है, एक लड़की कुम्हार के घर है, एक लड़की जुलाहे के घर है। वर्षा आने के दिन है लेकिन वर्षा नहीं आई। कुम्हार बड़ा खुश है। उसकी पत्नी भगवान् को धन्यवाद देती है कि भगवान् तेरा धन्यवाद क्योंकि हमारे सब बड़े बनाए हुए रखे थे। यदि वर्षा आती तो हम मर जाते । एक आठ दिन पानी रुक जाए तो हमारे सब घड़े पक जाएं और बाजार चले जाएं। लेकिन किसान की पत्नी बड़ी परेशान है क्योंकि खेत तैयार है, पानी नहीं गिर रहा है। अगर आठ दिन की देरी हो गई तो फिर फसल बोने में देरी हो जाएगी और हमारे बच्चे भूखे मर जाएंगे। तीसरी लड़की जुलाहे के घर है। उसके कपड़े तैयार हो गए हैं। उसने रंग कर लिया है और वह भगवान् से कहती है कि अब तेरी मर्जी । चाहे आज गिरा, चाहे कल गिरा; अब हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। कहानी कहती है कि भगवान् अपने देवताओं से पूछता है कि बोलो : मैं क्या करूं? मैं किसकी इच्छा पूरी करूं। और ये तो सिर्फ तीन लोग है । अगर सारी पृथ्वी के लोगों की इच्छाएं पूछी जाएं और पूरी कर दी जाएँ इसी वक्त तो पृथ्वी समाप्त हो जाए। हमारी इच्छाएं और उनके दौर से हम क्या पाना चाह रहे हैं, हमें कुछ भी पता नहीं है लेकिन भ्रान्ति चलती चली जाती है क्योंकि हमारा ख्याल यह होता है कि दुःख मिल रहा है इसलिए कि इच्छा पूरी नहीं हुई। सुख मिलता अगर इच्छा पूरी हो जाती। लेकिन जो गहरे इस विचार में उतरेगा उसे पता चल जाएगा कि कोई इच्छा की पूर्ति सुख नहीं लाती है बल्कि वह बड़ा इ.स. लाती है । अपूर्ति इतना दुःख लाती है तो पूति कितना दुःख लाएगी। बीज को जब इतनी सुविधा मिली तो वह इतमा जहरीला फल लाया है। पूरी सुविधा मिलती तो कितना जहरीला फल लाता। तो प्रत्येक इच्छा दुःख में ले जाती है लेकिन सुख में ले जाने का आश्वासन देती है। प्रत्येक नाव दुःख की है लेकिन सुख के घाट उतार देने का वचन है। और हजार बार हम नाव में बैठते हैं रोज और हजार बार दुःख की नाव दुःख के घाट पर उतार देती है। लेकिन हम कहते है कि कहीं कोई भूल हो गई है
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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