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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में मेल ही नहीं है। अगर वह व्यक्ति होगा तो अपने ढंग से जिएगा। और मगर हमारी बात मानेगा तो व्यक्ति नहीं होगा, उसमें कोई आत्मा नहीं होगी। वह मरी हुई चीज होगी, वह फर्नीवर की तरह होगा जिसे कहीं भी उठाकर रख दिया, वह वहीं रखा रह गया। । एक आदमी गरीब है और वह कहता है कि मैं इसलिए गरीब हूँ कि जितना धन मैं चाहता हूँ, वह मुझको नहीं मिलता। अगर मुझे उतना धन मिल जाए तो मैं दुखी न रहै। ठीक है उसे उतना धन दे दिया गया। पहली बात यह है कि उसे इतना धन मिलने पर उसकी इच्छा और आगे चली जायगी । वह कहेगा : इतने से क्या होता है, यह तो कुछ भी नहीं है । समझ लीजिए कि उसकी इच्छा है कि सारे जगत् का धन उसे मिल जाए और उसकी यह इच्छा पूरी हो जाय कि उसे सारी पृथ्वी का धन मिल जाए तो क्या आपको पता है कि वह कितना दुःख झेलेगा? आपको कल्पना भी नहीं है। धनी होने का मजा ही इसमें था कि दूसरे पनियों को पीछे छोड़ा। धनी होने का मजा ही यह था कि प्रतियोगिता पी, प्रतिस्पर्षा थी कि उसमें हम जीते। अगर एक व्यक्ति को सारी दुनिया का धन मिल जाए उसकी इच्छा के अनुकूल तो वह बिल्कुल उदास हो जाएगा क्योंकि न कोई प्रतिस्पर्धा है, न कोई प्रतिस्पर्षा का उपाय है। अगर सारी पृथ्वी का धन एक व्यक्ति को मिल जाए तो वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा क्योंकि वह कहेगा अब क्या करें ? और वह बहुत उदास . हो जाएगा। सिकन्दर के सम्बन्ध में एक कथा है कि सिकन्दर से योजनीन ने कहा कि अगर तूने सारी पृथ्वी जीत ली तो फिर सोचा है कि क्या होगा ? सिकन्दर ने कहा कि अभी तो जीतना ही मुश्किल है। लेकिन आयोजनीज ने कहा कि अभी तो जीतना ही मुश्किल है। लेकिन डायोजनीज ने कहा कि समझ लें, जीत ही ली, फिर क्या होगा ? और कहानी है कि सिकन्दर एकदम उदास हो गया। उसने कहा कि यह मैंने कभी ख्याल नहीं किया। लेकिन सच ही बगर पूरी पृथ्वी जीत ली तो फिर ? वह योजनीज से पूछने लगा कि फिर क्या करूंगा? गयोजनीज ने कहा कि मान लो कि तूने सारी पृथ्वी जीत ली तब तू सुखी होगा कि दुखी होगा? यह भी दूर रहा । तू तो अभी दुखी हो गया यह बात सोचकर कि सारी पृथ्वी जीतं लो तो फिर? फिर सवाल ही क्या रहा? हमारी मचाएं पूरी नहीं होती को हम गुल पाते हैं, हमारी रचाएं पूरी हो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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