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७.
महावीर मराहिम
नहीं । मानन्द सुख नहीं है। अगर उसे सुख बनाया तो फिर पुल की दुनिया शुरू हो गई। साधारणतः हम कहते है कि वह व्यक्ति मानन्द को उपलब्ध होता है जो पुल से मुक्त हो जाता है। लेकिन यह कहने में थोड़ी प्रान्ति हैं। कहना ऐसा चाहिए कि मानन्द को वह व्यक्ति उपलब्ध होता है, जो सुख दुःख से मुक्त हो जाता है। क्योंकि जो सुख दुःख है, वह कोई दो चीज नहीं है। इसलिए साधारण जन को निरन्तर यह भूम हो जाती है समझने में और वह मानाद को सुख ही समझ लेता है। समझता है कि दुःख से मुक्त हो जाना ही सुख है । इसलिए बहुत से लोग सत्य की खोज में या मोक्ष की खोज में वस्तुतः सुख की ही खोज में होते हैं। इसलिए महावीर ने एक बहुत बढ़िया काम किया है । सुख के खोजी को उन्होंने कहा है कि वह मर्ग का खोजी है। मानन्द के खोपी को उन्होंने कहा कि वह मोक्ष का खोजी है।
दुःख का खोजी नरक का खोजी है, सुख का खोजी स्वर्ग का खोजी है। लेकिन दोनों से अलग जो मुक्ति का खोजी है, वह आनन्द का खोजी है। स्वर्ग मोष नहीं है। महावीर के पहले बहुत व्यापक धारणा यही थी कि स्वर्ग परम उपलब्धि है। उसके आगे क्या उपलब्धि है ? सब सुख मिल गया तो परम उपलब्धि हो गई। लेकिन मनोवैज्ञानिक रीति से समझना चाहिए कि जहाँ सुख होगा, वहाँ दुःख अनिवार्य है । जैसे, जहाँ उष्णता होगी, वहां शीत अनिवार्य है। जहाँ प्रकाश होगा, वहां अंधकार अनिवार्य है। असल में ये एक ही सत्य के दो पहलू है और एक साथ हो जीते हैं। और इनमें से एक को बचाना और दूसरे को फेंक देना असम्भव है। ज्यादा से ज्यादा इतना ही किया जा सकता है कि हम एक को ऊपर कर लें और दूसरा नीचे हो जाए। जब हम सुख के भ्रम में होते हैं तब दुःख नीचे छिपा है और प्रतीक्षा करता है कि कब प्रकट हो जाऊं।
और जब हम दुःख में होते हैं तब सुप नीचे छिपा होता है और प्रतिपल आशा 'दिए जाता है कि अभी प्रकट होता है, अभी प्रकट होता है। लेकिन दोनों चीजें एक ही है और अगर यह समझ में आ जाए तो सुख का भ्रम टूट जाता है।
सुख का भ्रम टूटे तो दुःख का साचात् होता है। सुख का भ्रम बना रहे तो दुःख का साक्षात् नहीं होता। क्योंकि उस भ्रम के कारण हम दुःख को सहनीय बना लेते हैं। हम उसे झेल लेते हैं। सुख का भ्रम दुःख का पूर्ण साक्षात् नहीं होने देता, जैसा दुःख है उसे पूरा प्रकट नहीं होने देता। उसकी पूरी पैनी धार हमें छेद नहीं पाती। सुख, दुःख की धार को खोखला कर देता है। असल में हम दुःला की ओर देखते ही नहीं। हम सुख की ओर ही देखे चले जाते है।