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________________ प्रश्नोत्तरप्रमाण-२४ ७१५ रोकने को नहीं है। यानी अगर मुझे ऐसा लगता है कि मैं आपके द्वार पर खटखटाऊँ यह भी जानते हुए कि किसी को षगाया नहीं जा सकता उसके पहले। यह भी हो सकता है कि मैं जानता होऊँ कि किसी को जागने के पहले जगाया नहीं जा सकता, सब को अपनी सुबह है और वक्त पर सबकी नींद पूरी होगी तभी वे जागेंगे और बीच में जगाना दुःखद भी हो क्योंकि वे फिर सो जाएं यानी नींद तो पूरी हो जानी चाहिए किसी की। मैं जाकर पांच बजे उसका दरवाजा खटखटा हूँ और वह जाग भी जाए, करवट बदले और फिर सो जाए। और शायद पहले वह पांच बजे उठा था, अब वह आठ बजे उठे क्योंकि यह बीच का जो अन्तर पड़ा, वह नुकसान दे जाए उसे । बाप जगेंगे कि नहीं, सवाल यह नहीं है। सवाल यह है कि मैं जाग कर जो आनन्द अनुभव कर रहा हूँ, वह मुझे परेशान किए जा रहा है। वह मानन्द मुझे कह रहा है : जाबो, किसी के द्वार खटखटा दो। यानी अब बहुत गहरे में हम समझे तो बाप नहीं है केन्द्र करुणा के। यानी बाप बगेंगे कि.नहीं यह विचारणीय नहीं है। लेकिन जो जग गया है, वह एक ऐसे मानन्द को अनुभव करता है कि बन्तिम वासना उसकी यह होगी कि वह अपने प्रियजनों को खबर कर दे, भले ही प्रियजन उसको गाली दें कि बेवक्त नींद तोड़ दी, दुश्मन दरवाजा खटखटा रहा है। बहुत गहरे में देखने पर पता चलेगा कि यह करुणा अपना चुनाव है । हमसे, मापसे कोई गहरा सम्बन्ध नहीं है। वासना भी अपना चुनाव है। जैसे समझ लें कि मैं आपको प्रेम करने लगू यह मेरा चुनाव है। जरूरी नहीं कि आप मुझसे प्रेम करें और जरूरी नहीं कि मेरे प्रेम से आपको आनन्द भी मिले। और हो सकता है कि मेरा प्रेम बापको दुःख दे और मेरा प्रेम बापको परेशानी में डाले । फिर भी मैं पापके लिए प्रेम से भरा है। यह मेरी भीतरी बात है। और मैं प्रेम करूंगा और यह प्रेम आपके लिए क्या लाएगा, कुछ भी नहीं कहा जा सकता । हालांकि मेरा प्रेम कोशिश करें कि आपके लिए हित माए, मंगल पाए, लेकिन यह परी नहीं। करुणा को मैं कह रहा है बन्तिम वासना। जिसकी सारी वासनाएँ क्षीण हो गई, उस बादमी को मानन्द उपलब्ध हो गया। मन्तिम वासना एक रह बाती है कि वह मालमसरों को भी उपलब्ध हो जाए। अब अपने लिए पाने को कुछ भी शेष नहीं रहा। उसने मानन्द पा लिया। बब एक अन्तिम
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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