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________________ प्रश्नोत्तर-प्रमान-२४ ७११ रुपये लेकर भागा होता तो हो सकता है कि उस भादमी ने थैली गोष ली होती और वह अपने घर चला गया होता कि ठीक है लेकिन तब इस पैली की उपलब्धि का वह रस नहीं हो सकता था क्योंकि थैली फिर वही की वही पी और मादमी फिर गांव-गांव में पूछता कि मानन्द का रास्ता क्या है ? . सुख कैसे मिले ? नसरुद्दीन ने कहा कि 'सुख को सोओ तो सुख मिलेगा। अब यह बड़ा अजोब मालूम पड़ता है। जिसे पाना है, उसे लोगो क्योंकि अगर वह पाया ही हुआ है तो उसका पता ही नहीं चलेगा। तो संसार में हम वही सोते हैं जो हमें मिला हुआ है। मोल में हम वही पाते हैं जो हमें मिला हमा है। और यह सारा का सारा चक्र स्वतंत्रता के केन्द्र पर घूमता है । जितना शान, जितना आनन्द, उससे भी गहरी स्वतंत्रता-इसलिए मुक्ति की हमारी इतनी आकांक्षा है, बंधन का इतना विरोष है और हम मुक्त होना चाहते हैं लेकिन बन्धन को अनुभव कर लेंगे तभी। प्रश्न : मारमा स्वतन्त्र है। लेकिन वासना के कारण परतन्त्र ही उत्तरवासना भी उसकी स्वतन्त्रता है। वासना को भी वही चुनती है, बंधन को भी वही चुनती है। यानी में स्वतन्त्र होकर चाहूं तो हथकड़ी अपने हाथ में बांध लूं। कोई मुझे रोकने वाला नहीं है। और इसके लिए भी स्वतन्त्र हूँ कि चाबी से ताला लगाकर चाबी को फेंक दूं, कि उसको खोजना ही मुश्किल हो जाए । मैं इसके लिए भी स्वतन्त्र हूँ कि अपनी हथकड़ी पर सोना चढ़ा हू। लेकिन अन्तिम निर्णय मेरा ही है। यहां कोई किसी को परतन्त्र नहीं कर रहा है । हम होना चाहते हैं तो हो रहे हैं। हम नहीं होना चाहते तो नहीं होंगे। बहुत गहरे में जो वासना का है वह भी हमारा चुनाव है। कौन तुमसे कहता है कि वासना करो। तुम्हें लगता है कि वासना को पाने, पहचानें, शायद उसमें भी सुख हो, तो उसे खोजें तो तुम यात्रा करो। यात्रा जरूरी है ताकि तुम जानो कि सुख वहां नहीं था और दुःख ही था । और अगर वासना का ख प्रकट हो जाएगा तो तुम वासना छोड़ दोगे। तब तुम्हें कोई रोकने नहीं आएगा कि क्यों वासना छोड़ी जा रही है। कोई तुम्हें कहने नहीं पाएगा कमी कि क्यों तुम वासना पकर रहे हो। मन्य को स्वतन्त्रता परम है और स्वतन्त्रता तभी पूर्ण है जब पूरा करने का भी हक हो । बगर कोई कहे कि बच्चा करने की स्वतन्त्रता है, पूरा करने
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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