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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में भी, हिन्दू से भो, मुसलमान से भी सबसे ले लेते है। सबको जोड़कर हम एक मानव धर्म बना लेते हैं। उससे कोई सम्प्रदाय खंडित न हुमा। सम्प्रदाय अपनी जगह बड़े रहे और थियोसॉफी एक नया सम्प्रदाय बन गई। उससे कुछ फर्क नहीं पड़ा । थियोसोफिस्ट का अपना-अपना मन्दिर, अपनी व्यवस्था हो गई। थियोसॉफिस्ट का अपनी पूजा का ढंग अपना हिसाब हो गया। एक नया धर्म खड़ा हो गया। उसका अपना तीर्थ बना, अपना सब हिसाब हुवा। लेकिन उससे किसी पुराने सम्प्रदाय को कोई चोट नहीं पहुंची। दो कोशिशें की गई । एक, धर्म सर्वग्राही हो जाए, वह नहीं हुमा । दूसरा, सभी धर्मों में जो सार है उसको इकट्ठा कर लिया जाए, वह भी नहीं हो सका। अब मैं आपको तीसरी दिशा सुझाना चाहता हूँ और वह यह कि सम्प्रदाय मात्र का विरोध किया जाए; सम्प्रदाय मात्र को विजित किया जाए और धामिकता की स्थापना की जाए-धर्म की नहीं, पार्मिकता की। अगर वह सम्भव हो सका तो मानव धर्म तो नहीं बनेगा, कोई एक धर्म, एक घर्ष नहीं होगा, एक पोप नहीं होगा, एक झंडा नहीं होगा लेकिन फिर भी; बहुत गहरे अर्थों में मानव धर्म स्थापित हो जाएगा। उस गहरे अर्थ पर ही मेरी दृष्टि है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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