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________________ १९८ महावीर : मेरी दृष्टि में उत्तर :में मत-मतान्तरों का तनिक भी पक्षपाती नहीं है। न कोई जैन है, न कोई बौद्ध है, न कोई हिन्दू है, न कोई ईसाई है, न कोई मुसलमान है। ___ दुनिया में दो तरह के ही लोग हैं सिर्फ धार्मिक और अधार्मिक । जो धार्मिक है, वह बुद्ध हो सकता है, महावीर हो सकता है, कृष्ण हो सकता है, क्राइस्ट हो सकता है। लेकिन वह हिन्दू, जैन, मुसलमान और ईसाई नहीं हो सकता । धार्मिक व्यक्ति वही हो पाता है जो बुद्ध और महावीर हो सकता है। अधार्मिक व्यक्ति न बुद्ध हो पाता है न महावीर हो पाता है। वह जैन हो जाता है और बुद्ध हो जाता है। अधार्मिक आदमियों के सम्प्रदाय है। पार्मिक आदमी का कोई सम्प्रदाय नहीं। इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि धर्म का कोई सम्प्रदाय नहीं है, सब सम्प्रदाय अधर्म के हैं । अधार्मिक आदमी महावीर होने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, जीसस नहीं हो सकता, बुद्ध नहीं हो सकता, कृष्ण नहीं हो सकता। अधार्मिक आदमी क्या करे ? अधार्मिक आदमी भी धार्मिक होने का मजा लेना चाहता है लेकिन धार्मिक नहीं हो सकता क्योंकि धार्मिक हो जाना एक बड़ी क्रान्ति से गुजरना है । तब वह एक सस्ता रास्ता निकाल लेता है। वह कहता है कि महावीर तो हम नहीं हो सकते लेकिन जैन तो हो सकते हैं। वह कहता है कि महावीर को हम मान तो सकते हैं, अगर महावीर नहीं हो सकते । मानने में तो कोई कठिनाई नहीं है। हम महावीर के अनुयायी तो हो सकते हैं। तो हम जैन है। लेकिन उसे पता नहीं कि जिन हुए बिना कोई जैन कैसे हो सकता है ? जिसने जीता नहीं सत्य को वह जैन कैसे हो सकता है ? महावीर इसलिए जिन है क्योंकि उन्होंने सत्य को जीता है। यह इसलिए जैन है कि यह महावीर को मानता है। जागे बिना कोई बोट कैसे हो सकता है ? बुद्ध जागकर बुद्ध हुए हैं । बुद्ध का अर्थ है जागा हुआ यानी जो जाग गया। बुद्ध को जगाना पड़ा बुद्ध होने के लिए लेकिन हम जागने की हिम्मत नहीं जुटा पाते तो हम बुद्ध को मान लेते हैं और बौद्ध हो जाते हैं। जीसस को सूली पर लटकाना पड़ा था क्राइस्ट होने के लिए लेकिन सूली पर लटकना बहुत मुश्किल है। हम एक सूली बना लेते हैं लकड़ी की, चांदी की, सोने की, गले में लटका लेते हैं और क्रिश्चियन हो जाते है । ये तरकीबें है धार्मिक होने से बचने की। सम्प्रदाय तरको है धार्मिक होने से बचने की। धर्म का कोई सम्प्रदाय नहीं है। पार्मिक आदमी का कोई पच नहीं है। सब अधामिक बादमी के.सगड़े
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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