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प्रश्नोत्तर-प्रवचन- २३
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होगा ? वह चाहे शुद्ध जल में बने, चाहे गंदे जल में वह तो वही है । लेकिन फिर भी सागर में वह और दिखाई पड़ रहा है, गंदे डबरे में और दिखाई पड़ रहा है ।
उस दिन मैं इतनी खुशी से लोटा कि रास्ते पर जो भी मिला मैं आनन्द से भर गया । मैं उसे गले लगाता, आलिंगन करता । वह आदमी भी मिल गया जिससे मैं बचकर निकलता था । मुझे पहली बार लगा कि वह आदमो भी ईश्वर है । और आज मैंने उसे भी गले लगा लिया । उस आदमी ने कहा ठीक है, अब मैं पहचाना कि तुझे अनुभव हो गया है, अब नहीं पूछूंगा । क्योंकि जब मैं तेरे पास आता था तो तू ऐसे बचता था मुझसे कि मुझे लगता था कि इसको कैसे ईश्वर का अनुभव हुआ होगा । मैं भी तो ईश्वर ही है। अगर ईश्वर का अनुभव हो गया है तो अब किससे बचना है, किससे भागना है ? अब तुझे अनुभव हो गया, अब ठीक है । अब मैं देखता हूँ तेरी आंख में। तीन दिन तक यह हालत रही । आदमी चुक गए तो गाय, भैंस, घोड़े जो भी मिल जाते, उनसे भी गले लगता । वे भी चुक जाते तो वृक्षों के गले लगता । तीन दिन यह अवस्था थी । उन तीन दिनों में जो जाना बस फिर वह जीवन भर के लिए सम्पदा बन गया । सब चीज में वही दिखाई पड़ने लगा ।
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यह एक छोटी सी घटना है। गंदे डबरे में बना हुआ प्रतिबिम्ब सागर में बने हुए प्रतिविम्ब से भिन्न थोड़े ही हो जाएगा । वह तो वही है। फिर भी, सागर का प्रतिबिम्ब सागर का ही है, गड्ढ़े का गड्ढ़े का है। महावीर में जो प्रतिबिम्ब बनेगा सत्य का, वह वही है जो मुझ में बने आप में बने, किसी में बने । लेकिन फिर भी महावीर का महावीर का होगा, मेरा मेरा होगा, आपका आपका होगा । चांद वही है, सूरज वही है, सत्य वही है,
प्रतिबिम्ब भी वही
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और फिर जब के
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महावीर के पहले
है । लेकिन जिन-जिन में बनता है, वह अलग-अलग है। उसकी अभिव्यक्ति देने जाते हैं तब और अलग हो जाते हैं मी चर्चा यी प्रेम की और बाद में भी रहेगी। लेकिन महावीर में जो प्रतिबिम्ब बना है, वह निपट महावीर का है। वैसा प्रतिबिम्ब न कभी बना था, न बन सकता है ।
प्रश्न: क्या आप मत-मतान्तरों के पक्षपाती हैं? क्या बुद्ध के बीड, महावीर के जैन, ईसा के ईसाई आदि सम्प्रदाय समाप्त करके एक मानव धर्म की स्थापना नहीं की जा सकती ?