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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२२ ३७५ हिस्सों में सरल नहीं होगा। दूसरे हिस्सों में भी उसकी विक्षिप्तता प्रकट होगी, उसका पागलपन प्रकट होगा। और इस देश में निर्णय लेने की जरूरत पड़ गई है अब । क्योंकि यह कोई पांच हजार साल से उपद्रव चल रहा है । उस उपद्रव में तय करना मुश्किल हो गया है कि कौन आदमी प्रामाणिक है और कौन आदमी पागलपन की ओर झुक रहा है। ये दोनों ही हो सकते हैं, इसलिए बहुत साफ रेखा खींचना जरूरी है। धार्मिक पागलपन ज्यादा खतरनाक चीज है क्योंकि उसमें धर्म भी जुड़ा हुआ है। पागलपन सीधा हो तो एक अर्थ में सरल होता है। क्योंकि पागल आदमी निरीह हो जाता है। धार्मिक पागल निरोह नहीं होता, दूसरों को निरीह करता है। खुद तो उनके ऊपर खड़ा हो जाता है। अब जैसे कि सेंट जोन आफ आर्क को एक पोप ने आग में जलाए जाने की सजा दी। आग में जला दी गई वह औरत । जलाई इसलिए गई कि वह धर्म के विपरीत बातें कर रही थी।.. पोप को पूरा मजा था इस बात का कि वह धार्मिक आदमी है और एक औरत को जला रहा है क्योंकि वह बहुत अधार्मिक बातें कर रही है और वह भगवान् का काम कर रहा हैं। अब एक स्त्री को जलाना और जोन जैसी सरल स्त्री को जलाना एकदम अधार्मिक कृत्य था। लेकिन पोप को एक तृप्ति है। अगर कोई दूसरा आदमी ऐसा काम कर दे तो वह आदमी पागल सिद्ध होता है, अपराधी सिद्ध होता है । पोप अपराधी नहीं हुआ। सात साल बाद, दूसरे पोप जब सत्ता में आए तो उन्होंने विचार किया और पाया कि यह तो ज्यादती हो गई; जोन तो बड़ी सरल औरत थी और उसे तो सन्त की पदवी दी जानी चाहिए। तो वह सेन्ट जोन बनी। जिस पोप ने आग लगवाई थी वह पोप अपराधी हो गया था लेकिन वह मर चुका था। अब क्या किया जाए ? तो इस पोप ने उसको सजा दी कि उसकी हड्डियों को निकाल कर जूते मारे जाएं और सड़क पर घसीटा जाए। उस मरे हुए पोप की हड्डियाँ निकाली गई, उसकी कब्र खोली गई, उसको जूते मारे गए, उसके ऊपर थूका गया और उसकी हड्डियों को सड़क पर घसीट कर अपमानित किया गया । अब यह आदमी उससे भी ज्यादा पागल है। लेकिन इसका पागलपन दिखाई नहीं पड़ता । इसका पागलपन एक धार्मिक परिभाषा ले रहा है। यह धार्मिक एक जाल पैदा करेगा शब्दों का जो कि बिल्कुल ठोक मालूम पड़ेगा। धर्म इसकी विक्षिप्तता को औचित्य दे रहा है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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